अजूबा
फिल्म साल 1991
में
आई.
अद्भुत
प्रयोगों से बनी इस फिल्म की
शूटिंग के दिनों को याद करते
हुए ऋषि कपूर बताते हैं कि-
‘शशि
अंकल हाथ में छड़ी लेकर डायरेक्ट
करते थे.’
इस
किस्से को बढ़ाते हुए अमिताभ
बच्चन कहते-
‘वो
छड़ी सेट पर कहानी में सुधार
लाती थी.
अनुशासन
बनाने के काम आती थी.
लेकिन
शूटिंग के आखिरी दिनों में
वही छड़ी रशिया (रूस)
में
खो गई.
जिसका
मैंने भगवान का शुक्रियादा
भी किया!’
शशि
के जीवन से जुड़े ऐसे ही
इंटरस्टिंग किस्सो पर अंग्रेजी
में किताब आई है.
बायोग्राफी
का नाम है-
शशि
कपूर :
द
हाउसहोल्डर,
द
स्टार. आसिम छाबरा इस किताब के लेखक है.
200 पेजों
वाली इस किताब में 7
चैप्टर
है.
लेखक
आसिम किताब की शुरुआत में अपनी
पत्नी का शशि कपूर पर क्रश के
जिक्र से करते हैं.
बायोग्राफी
में लिखते हैं कि 18
मार्च
1938 को
कोलकाता में पृथ्वीराज कपूर
के घर में एक लड़के का जन्म
हुआ.
फैमिली
में नाम के बाद राज शब्द लगाने
का रिवाज था.
उस
लड़के का पूरा नाम बलबीर राज
रख दिया.
पर
मां को ये नाम कम ही रास आया.
बलबीर
जब छोटे थे तो रात में ज्यादा
वक्त चांद को देखने में बीताते
थे.
तो
मां ने उनका नाम शशि रख दिया.
बचपन
में ही शशि परिवार के साथ बोम्बे
आ गए.
जब
वो 6
साल
के थे तो पिता ने पृथ्वीराज
कपूर के नाम से थियेटर स्थापित
की.
15 साल
के होने पर शशि ने पिता का
थियेटर फुल टाइम के लिए ज्वॉइन
कर लिया.
साल
1953-60
तक
थियेटर की बारीकियां सीखी.
पृथ्वीराज
की बिगड़ती तबीयत के चलते
थियेटर कंपनी को बंद करना
पड़ा.
शशि
भाई राज कपूर की आरके फिल्म
प्रोडक्शन हाउस से जुड़े.
कुछ
समय के बाद शशि ने वहां से भी
छोड़ दिया.
जेनिफर
से प्यार और फिर शादी तक शशि
की ये कहानी किसी फिल्मी प्लॉट
से कम नहीं लगती.
थियेटर
के दौरान जेनिफर को शशि ने
स्टेज के पीछे से देखा.
और
पहली नजर में प्यार हो गया.
लेकिन
जेनिफर के पिता जॉफ्री केंडल
को शशि से अपनी बेटी का मिलना
पसंद नहीं था.
जॉफ्री
शेक्सपियर थियेटर कपंनी चलाते
थे.
जॉफ्री
की ऑटोग्राफी का हवाला देते
हुए लेखक आसिम लिखते हैं कि
जॉफ्री अपने बच्चों को लेकर
काफी पॉजेसिव थे.
खासकर
जेनिफर के लिए.
क्योंकि
वो उनके थियेटर की स्टार
परफोर्मर थी.
जॉफ्री
ने जेनिफर से यहां तक कहा कि
वो लड़का भारतीय है.
तुम
उससे 4
साल
बड़ी हो.
जॉफरी
इस शादी के पक्ष में नहीं थे.
जर्नलिस्ट
मधु जैन को दिए इंटरव्यू में
शशि ने स्वीकारा कि-
‘जेनिफर
को पाने के लिए वे अपनी लड़ाई
लड़ते और किसी भी हद तक जा सकते
थे.’
शशि
और जेनिफर के प्रेम प्रसंग
से बड़े भाई शम्मी कपूर और
गीता बाली वाकिफ थे.
दोनों
को अपने यहां रखा भी.
शम्मी
ने शशि-जेनिफर
की शादी के लिए माता-पिता
को मनाया.
जिसे
ना चाहकर भी उन्हें इस रिश्ते
के लिए मानना पड़ा.
पिता
पृथ्वीराज कपूर के अलावा भाई
शम्मी और राज दोनों ही अभिनय
की दुनियां में बड़ा नाम कमा
चुके थे.
उनकी
प्रसिद्धि के सामने शशि के
लिए बड़ा स्टार बनने की बड़ी
चुनौती थी.
शशि
ज्यादा वक्त डायरेक्टरों से
मिलने,
स्टूडियो
विजिट करने और फिल्मों के
डिस्ट्रीब्यूशन के कामों में
बीताते.
आखिर
शशि को पहला ब्रेक चार दीवारी
फिल्म में मिला.
सोशल
ड्रामा जॉनर की इस फिल्म में
नंदा ने नायिका का किरदार
निभाया.
जो
धूल के फूल व कानून समेत 25
फिल्मों
में काम कर चुकी थी.
चार
दीवारी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर
उतना अच्छा नहीं कर पाई.
इसके
अलावा शशि ने नंदा के साथ
'मेहंदी
लगेगी मेरे हाथ'
और
'मोहब्बत
इसको कहते हैं'
फिल्म
की.
दोनों
ही फ्लॉप रही.
साल
1965 में
शशि और नंदा ने 'जब-जब
फूल खिले'
में
काम किया.
जो
कश्मीर में बनी लव स्टोरी पर
आधारित थी.
परदेसियों
से ना अंखिया मिलाना और ना ना
करते प्यार जैसे गाने खूब
पॉपुलर हुए.
ये
फिल्म काफी सफल रही.
दर्शकों
की डिमांड पर शशि और नंदा ने
4 फिल्में
और की.
दोनों
ने कुल 8
फिल्मों
में एक साथ काम किया.
जबकि
साल 1961
में
शशि की अभिनीत वाली धर्मपुत्र फिल्म ने
नेशनल अवार्ड जीता.
कपूर
फैमिली में शशि पहले व्यक्तित्व
थे जो लंबे समय तक फिट और स्लीम
रहे.
जेनिफर
जिंदा रहते हुए उनकी डाइट को
लेकर सख्त रहती थी.
शशि
लंच में एक संतरा और दही लिया
करते थे.
भारतीय
सिनेमा की प्रोफेसर और लेखक
रचेल ड्वेयर को दिए इंटरव्यू
में शशि बताते हैं कि-
'एक्टर
के तौर पर फिल्मों में पैसे
कमाने के लिए आए.
थियेटर
उन्हें बेहद पसंद था लेकिन
वहां पैसे नहीं थे.’
हिंदी
के अलावा अंग्रेजी में डायलॉग
डिलीवरी से शशि ने हिंदुस्तान
में विदेशी डायरेक्टरों-प्रोड्यूसरों
के लिए भी दरवाजे खोल दिए.
उसी
का नतीजा रही द हाउसहोल्डर
फिल्म.
अमेरिकन
डायरेक्टर जेम्स आइवरी और
प्रोड्यूसर इस्माइल मर्चेंट
के साथ शशि ने कई फिल्में की.
जैसे-
शेक्सपियर
वल्लाह,
बोम्बे
टॉकिज,
हीट
एंड डस्ट व साइड स्ट्रीट्स.
दीवार
फिल्म की सफलता से शशि के करिअर
को 70
के
दशक में नई पहचान मिली.
भारतीय
सिनेमा में ये पहला मौका था
जब 2 हीरो
का कॉम्बिनेशन दर्शकों को
पसंद आया.
अमिताभ
ने भी स्वीकार किया कि-
‘शशि
और उन्हें भाइयों की तरह देखा
जाता था.’
उस
दौर की ये जोड़ी शशिताभ कहलाई.
दोनों
ने 14
फिल्मों
में साथ-साथ
काम किया.
शशि
ज्यादातर फिल्मों में रवि की
भूमिका में होते तो अमिताभ
विजय की.
अभिनय
में सारा समय और ऊर्जा खपाने
वाले शशि फिल्म निर्माण में
आ गए.
यहां
उन्हें इस्माइल मर्चेंट का
साथ मिला.
जुनून,
36 चौरंगी
लेन,
विजेता
व उत्सव जैसी फिल्में बनाई.
उम्र
भर की सारी कमाई गवा दी.
इससे
आहत जेनिफर ने शशि से यहां तक
कहा कि वे अपनी दुकान बंद कर
दें.
पर
शशि यहीं नहीं थमे.
ऐसा
नहीं है कि बॉलीवुड में भूमिकाओं
का उलटफेर शशि ने शुरू किया.
इससे
पहले राज कपूर को भी निर्देशन
और अभिनय करते देखा गया.
बीते
कुछ सालों में शाहरूख खान,
आमिर
खान,
सलमान
खान,
सैफ
अली खान और अक्षय कुमार समेत
ऐसे कई अभिनेता है जो फिल्म
निर्माण में उतरे.
शशि
के बेटे कुनाल ने यहां तक कहा
कि-
‘मेरे
पिता एक खराब बिजनेसमैन थे.’
शशि
के सिनेमा के सफर को महज इस
लेख में समेटा नहीं जा सकता.
लेकिन
लेखक आसिम छाबरा ने बायोग्राफी
के जरिये शशि के व्यक्तित्व
को सझाने की सफल कोशिश की है.
शशि
को करीब से जानने वाले यश
चौपड़ा,
इस्माइल
मर्चेंट,
श्याम
बेनेगल,
देव
बेनेगल,
शबाना
आजमी,
शर्मिला
टैगोर के अलावा कई जर्नलिस्टों
के बातचीत के अंश इस किताब को
रूचिकर बनाते हैं.
किताब
में शशि के शूटिंग और डायरेक्शन
से जुड़ी ब्लैक एंड व्हाइट
और कलर में दुर्लभ तस्वीरें हैं जो आकर्षित करती है.
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