पूछो
तो बताए.
एक
बाल मन की चाहत.
कटी
पतंग को लूट लेना.
पराई
गेंद को उस दिशा में ठोकर मारकर
उसके मालिक को भयभीत कर देना.
किसी
के बाग से फल तोड़ कर दौड़
पड़ना.
इसमें
मिलने वाली खुशी की कोई थाह
ही नही.
दुर्गा
जब गांव के एक बाग से अमरूद
तोड़ कर बिना कुछ पीछे देखे
घर की तरफ भाग रही होती है तो
उसका चेहरा खुशी से चमचमा रहा
होता है.
लेकिन
बाग मालकिन के उलाहने से उसका चेहरा पीला
पड़ जाता है.
दुर्गा
पुरोहित हरिहर की इकलौती बेटी
है.
जो
घर पर पिता की गैर मौजूदगी में
अंदर से लेकर बाहर तक के कामों
की जिम्मेदारी संभाली हुई
है.
कामों
में मां का हाथ बंटाती है.
छोटे
भाई अपू को संभालती है.
कच्चे
मकान से निकल कर बाहर खेतों
में गाय चराती है.
यहां
जो दृश्य है वो 'द
अपू ट्रायोलॉजीः पाथेर पंचाली'
फिल्म
का है.
तीन
भागों में बनी इस फिल्म के
निर्माता सत्यजित राय है.
उनकी
ये फिल्म बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय
के उपन्यास पाथेर पंचाली पर
आधारित है.
ब्लैक
एंड व्हाइट से सजी इस कहानी
के किरदारों की दुनियां उस
वक्त लड़खड़ाना शुरू होती है
जब बनारस में रहते हुए पुरोहित
हरिहर को गांव लौटने में देरी
हो जाती है.
इधर
घर में खाने को अनाज नहीं होता.
तब
इंसानियत का वो रिश्ता भी बोझ
लगने लग जाता है जब घर से मुंह
बोली बूढ़ी काकी को जाना पड़ता
है.
तेज
हवाओं के साथ हुई बारिश में
भीगने से दुर्गा की तबीयत खराब
हो जाती है.
बारिश
की बौछार और हवाएं कच्चे मकान
के दरवाजे-खिड़की
को झकझोर रही होती.
मां
धैर्यपूर्वक दुर्गा के तपते
सिर को गिले कपड़े से सामान्य
करने की कोशिश में जुटी रहती
है.
समय
पर सही इलाज नहीं मिलने से
दुर्गा की मौत हो जाती है.
सदमे
में डूबा पुरोहित परिवार बनारस
जाने को मजबूर हो जाता है.
कहानी
के केंद्र में अपू आ जाता है.
उसे
मां-पिता
दोनों का प्यार मिलता है.
यहां
आने के बाद भी गरीबी का साया
पुरोहित परिवार पर बना रहता है.तभी
अस्वस्थता के चलते पिता हरिहर
की मौत हो जाती है.
बनारस
के उस किराये के मकान से अपू
और उसकी मां अपने पैतृक घर चले
जाते हैं.
अपू
पढ़ाई के दम पर स्कॉलरशिप
हासिल करता है.
मां
चाहती है कि अपू पिता से मिले विरासत
में पुरोहिताई के काम
को संभाले.
लेकिन
अपू की आकांक्षाएं आगे की
पढ़ाई की होती है.
वह
कोलकाता चला जाता है.
यहां
एक नई उम्मीद दिखती है.
असुविधाओं
और अभावों से भरे मां-बेटे
के जीवन के दिन बहुरेंगे.
तभी
बीमार मां की मौत हो जाती है.
अपू
के जीवन का आखिरी सहारा भी
भाग्य छिन लेता है.
डायरेक्टर
ने फिल्म में अपू के बचपन से
लेकर युवा अवस्था के जीवन को
दिखाया है.
जो
पहले बहन,
पिता,
मां
और शादी के बाद पत्नी की मौत
के गम से गुजरता है.कथानक में ग्रामीण भारत के
सामाजिक और मानवीय पक्ष को
सहजता दिखाया है.
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