Saturday, 26 January 2019

लूज टॉक पर स्टॉप लगा पाएगी फिल्म ‘सोनी’!



पुलिस की वर्दी, कंधे पर लगे डबल स्टार और आंखों में गंभीर विचार लिए महिला ऑफीसर का ये पोस्टर बेहद अट्रेक्ट करता है. और ध्यान खींचता वो सीन जहां सर्द की रात में सुनसान रास्ते से साइकिल से जाती युवती को एक युवक तंग करता है. पोस्टर और सीन दोनों सोनी फिल्म के हैं. इवान आयर के निर्देशन में बनी ये फिल्म नेटफ्लिक्स की है. लंबे वक्त के बाद ऐसी फिल्म आई है जिसका शुरुआती सीन साल 2012 के दिल्ली निर्भया केस की संभवतः याद दिलाता है. कहानी के केंद्र में दिल्ल पुलिस की दो महिला ऑफीसर है. पहली सोनी और दूसरी उसकी सुप्रीटेंडेंट कल्पना. सोनी अक्सर बदतमिजी से पेश आने वालों पर बिफर पड़ती है. इसलिए नहीं कि वो पुलिस वाली है बल्कि उसने सोसायटी से डील करने के लिए खुद को ऐसा तैयार किया। ये हम उसके सार्वजिनक जीवन के साथ-साथ निजी जीवन में भी देखते हैं.

स्क्रीन पर दर्शक इस इंतजार में रहते हैं कि दोनों ऑफीसरों की इंवेस्टिगेशन से किसी ऐसे केस से भूचाल आएगा जो न जाने कहानी को किस चरम पर ले जाएगा? वो इंतजार एक ऐसी सच्चाई में तब्दील हो जाती है जिसे हम आजतक नजरअंदाज करते ही आए हैं. जी हां, राह चलती महिलाओं पर फब्तियां कसने, सड़क किनारे खड़े युवकों के ग्रुप से महिलाओं के रंग, रूप और सेक्सुअलिटी पर आती आवाजें (लूज टॉक) और महिला आधारित तमाम तरह के गाली-गालौज.  वैसे इस विषय को यहां पर पुरुष तक ही सीमित रखा है. फिल्म में पुलिस द्वारा चलाए गए आसामजिक तत्वों के खिलाफ ऑपरेशन की हिस्सा रही सोनी को युवती के तौर पर ये सब चीजें सताती है. ठीक वैसे ही जैसे क्रिकेटर हार्दिक पांड्या और केएल राहुल  के कॉफी विद करन शो पर चीयरलीडर्स को लेकर कही गई बातों ने सबको हैरान-परेशान कर दिया था. हमारे यहां महिलाओं पर कमेंट करने वाले पॉलिटिशियन और सेलेब्रिटिज की फेहरिस्त लंबी है. जैसे दिग्विज्य सिंह का महिलाओं पर दिया गया बयानटंच माल या पीएम नरेंद्र मोदी का शशि थरूर की पत्नी  को 100 करोड़ की गर्लफ्रेंड कहना.

डायरेक्टर आयर ने फिल्म को ऑफबीट बनाए रखने में सावधानी बरती है. दो-सवा दो घंटे की कहानी में अलग-अलग बिंदुओं को स्क्रीन पर पेश किया है. चाहे वो उनका पारिवारिक जीवन हो या ड्यूटी और पितृत्तात्मक का प्रेशर हो. अपराधियों और आरोपियों के खिलाफ सोनी के अपनाए गए रवैये की शिकायतें  डिपार्टमेंट के आला अफ्सरों तक पहुंचती है. यहां कल्पना अक्सर सोनी को बचाने के कोशिशें करती है। इसलिए कि डिपार्टमेंट को सोनी जैसे ईमानदार ऑफीसरों की जरूरत है. पर वहीं कल्पना अपने सीनियर ऑफीसर और पति संदीप सिंह के सामने कई जगहों पर शब्दहीन दिखती है. संदीप कल्पना से बार-बार कहता कि तुम जूनियर से इतनी अटैच क्यों हो जाती हो, न जाने हमने तुम्हें आईपीएस चुन ही क्यों.

फिल्म की खासियत यह कि बैचेन कर देने वाले सीन में कोई बैकग्राउंड म्यूजिक या बैकस्टोरी नहीं है. स्क्रीन पर जितना ध्यान खींचती है वो सब अभिनय और डायरेक्शन कैमरे का कमाल है. इस टेक्निक को सिंगल टेक कहते हैं. जो थोड़े लंबे होते हैं पर बोर नहीं करते. क्योंकि कंटेंट रियल लगता है. पुलिसकर्मी की सामान्य जिंदगी कैसी होती है. खासकर महिला की, जब वो किसी केस को डील करती है तो उन्हें ना जाने किन-किन कमेंट्स और प्रेशर का सामना करना पड़ता है. वो सब सोनी के जरिए देखते हैं. वो नेवी ऑफीसर द्वारा शराब पीकर गाड़ी चलाने पर पकड़े जाने पर उसकी दबंगई हो या लेडीज टॉयलेट में ड्रग्स-गांजा लेने वाले युवकों के पीछे पॉलिटिकल पावर. महिलाओं पर फब्तियां कसने और मसखरे मारने का जो कल्चर सड़क और सुनसान जगहों से पनपा अब उससे पुलिस कंट्रोल रूम भी अछूता नहीं लगता.  वहां भी अनजान कॉलिंग से महिलाओं की आवाज सुनने के लिए कॉल आने लगे  हैं.

मर्दवादी सोच पर फिल्में खूब बनीं है. उनके पीड़ित किरदारों के आंतरिक और बाह्य जीवन में लाचारपन और बेबस ही दिखाया. पर डायरेक्टर आयर ने ऐसे किरदारों को पुलिस की वर्दी से उसे ताकतवर दिखाया है. वो भी बिना किसी मुहीम और बदले की भावना के. कभी साथ में रहने वाले नवीन के भरोसा तोड़ने पर सोनी का रवैया दर्शकों को कठोर लग सकता है. लेकिन वो खुद सहज लगती है. कहानी को गहरा करने के लिए किस्सों का इस्तेमाल किया गया है. सोनी की मकान मालकिन उसे छेड़खानी से बचने के लिए सिंदुर लगा कर जाने का सुझाव देती है. आखिर में फिल्म का फेमिनिज्म का टेस्ट तब और तेज हो जाता है जब कल्पना अपने जूनियर ऑफीसर सोनी को फेमिनिस्ट पॉइट अमृता प्रीतम की नॉवले रसीदी टिकट थमाती है.  


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