ट्रेलर में मिलियनों व्यूज बटोरने वाली रंगबाज वेब सीरीज ऑन डिमांड वीडियो
प्लेटफॉर्म ZEE5
पर आ चुकी
है. रंगबाज क्राइम और पॉलिटिक्स के टेस्ट में नेटफ्लिक्स की सेक्रेड गेम्स और
प्राइम अमेजॉन के मिर्जापुर जैसी वेब सीरीज सी लगती है. कोई नॉवेल न सही पर सच्ची घटना
से प्रेरित इस वेब सीरीज का निर्देशन भाव धूलिया ने किया है. नौ एपिसोड वाली ये
सीरीज भारत की पहली वेब सीरीज है जो स्पेशल बैकड्रॉप (90 के दशक) पर
बनी है. कहानी शिव प्रकाश शुक्ला (साकिब सलीम) नाम के ऐसे गैंगस्टर की है जो पुलिस
से बचने के लिए शहर-दर-शहर बदल रहा है. फैक्ट्स के तौर पर डायरेक्टर ने जो दिखाया
है उसकी शुरुआत गाजि़याबाद में एसटीएफ के उस ट्रेकिंग रूम से होती है, जहां
गैंगस्टर शुक्ला को पकड़ने के लिए उसके कॉल्स की मॉनीटरिंग होती है. एक मंत्री और
दो एमएलए समेत 20
की हत्या
करने वाले गैंगस्टर शुक्ला के कॉलेज के शुरुआती दिन सामान्य युवा सा रहता है. वह
क्लासेज से बंक मारकर सिनेमा देखता है. बहन की सहेली को मन ही मन पसंद करता है.
उसे इशारे से हाय भी करता है. सीरीज के शुरुआत में हम देखते हैं कि पुलिस को चकमा
देकर भाग जाने वाला गैंगस्टर ताकतवर, बड़ी एप्रोच रखने वाला और भिड़ने के लिए
हमेशा तैयार रहता है. जैसा की साल 2005 में कबीर कौशिक की निर्देशित फिल्म ‘शहर’ में रियल कैरेक्टर श्रीप्रकाश शुक्ला का
किरदार निभाने वाले गैंगस्टर गजराज (सुशांत सिंह) को देखते हैं. लेकिन वेब सीरीज
में श्री प्रकाश शुक्ला के गैंगस्टर बनने की कहानी दिखाई गई है. जिसमें शिव प्रकाश
शुक्ला बहन को छेड़ने वाले की हत्या कर देता है. गिरफ्तारी से बचने के लिए स्थानीय
विधायक रामशंकर तिवारी की सह पर लखनऊ टू मुंबई, फिर मुंबई टू बैंकॉक चला जाता है.
काम ऐसा करो कि सब देखें और हमेशा याद करें- गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला
डायरेक्टर धूलिया की तारीफ करनी होगी. उन्होंने वेब सीरीज में क्राइम और
पॉलिटिकल रेशो बराबर का रखा है. दर्शकों को इसका पॉलिटिकल फ्लेवर भी पसंद आएगा.
गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला के बिहार कनेक्शन को नब्बे के दशक में वहां के
राजनीतिक संघर्ष के जरिए परोसा है. चौथे एपिसोड में साल 1995 की राजनीतिक
सरगर्मियों के दौर को शॉट्स के अलग-अलग हिस्सों में बिहार के सुशासन बाबू नीतीश
कुमार,
लालू प्रसाद
यादव और रामविलास पासवान को अपनी- अपनी रैलियों-सभाओं को संबोधित करते हुए दिखाया
है. तब चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे अवध बिहारी ने बाहुबली नेता चंद्रभान सिंह को
दुश्मन बना लिया था. यहां चंद्रभान सिंह की भूमिका में एक्टर रवि किशन है. जो जेल
में रहते हुए अपना नेटवर्क और बिजनेस दोनों चलाता है। उधर गोरखपुर में रामशंकर
तिवारी के धुर विरोधी ठाकुर नेता नरेंद्र शाही की भीड़ के बीच हत्या कर शिव प्रकाश
शुक्ला प्रदेश के पटल पर छा जाता है। चंद्रभान सिंह अवध बिहारी की हत्या के लिए
शिव प्रकाश शुक्ला से डील करता है. फिर इस तरह से गैंगस्टर शुक्ला और उसके गैंग को
न सिर्फ फंडिंग होती बल्कि पुलिस की गिरफ्त से बचने के लिए इनपुट भी मिलते हैं.
आगे गैंगस्टर शुक्ला का अपराधिक ग्राफ बढ़ता चला जाता है.
बहुत नाम कमा लिए तुम, तुम्हारा स्टोरी पटना तक पहुंच गया है. – बाहुबली नेता चंद्रभान सिंह
वेब सीरीज के एक पॉर्शन को जहां रवि किशन ने संभाला है तो दूसरे पॉर्शन को
तिगमांशु धूलिया ने संतुलित रखा है. यहां वो रमाशंकर तिवार के किरदार में है. जो
खुद को ब्राह्मणों के नेता के तौर पर स्थापित किए हुए हैं. इसलिए वे शुरुआत में शिव प्रकाश
शुक्ला की मदद भी करते है. इसके पीछे की साफ वजह भी है कि शुक्ला को अपना आदमी
बनाकर खुद के राजनीति की धार को और तेज कर सके. गोरखपुर पर खुद का वर्चस्व बना
सके. कहानी में कहीं जातिगत राजनीति और आरक्षण की बात हावी लगती भी है तो उसके
फैक्टर तिगमांशु धूलिया ही है. अनुभवी एक्टर और डायरेक्टर के तौर पर तिगमांशु
धूलिया का यहां वेब सीरीज में वो कॉन्सेप्ट भी नजर आता जिसे वे फिल्म ‘हासिल’ में लेकर आए थे. जो छात्र राजनीति से शुरू
होकर विधानसभा पहुंचती है. जिसका मकसद एक ही है सिस्टम में पहुंच कर पीछे के सभी
अपराधों पर परदा डालना. आज भी हम अपनी संसद और विधानसभाओं में कानून बनाने वालों
की संख्या पर नजर डाले तो ऐसे लोगों की तादाद ज्यादा है जिन पर गंभीर अपराधिक
मुकदमे दर्ज है.
हम तुमको अर्जुन बनाना चाह रहे थे, तुम्हारे अंदर तो दुर्योधन का खून बह रहा है- विधायक राम शंकर तिवारी
पूरी सीरीज में ये बात बार-बार दोहराई गई है कि शिव प्रकाश शुक्ला और उसकी
गैंग के काम करने का तरीका अलग है, एकदम नया है. ये बात पुलिस भी कहती है, पॉलिटिशियन
और अन्य दूसरे अपराध जगत के लोग भी कहते हैं. उसके मिजाज में आशिकपन भी है और
रेलवे टेंडर के जरिए बिजनेसमैन बनने की चाहत भी. पर वर्चस्व की लड़ाई में सीएम की
सुपारी लेने वाले इस गैंगस्टर में कुछ अलग तरह का नयापन कहीं नहीं दिखता. ये
अपेक्षित है. अगर कहा जाए की नयापन उसका तेवर है. उसका बेखोफ होकर रहना है या किसी
दुश्मन को घेरकर मार देना या फिर रिवॉल्वर से भीड़ में किसी की जान ले लेना नया है
तो वो समझ से परे. ऐसा कौन सा गैंगस्टर होगा जिसे ये मालूम होते हुए भी कि उसके
पीछे एसटीएफ की टीम हाथ धो कर पड़ी है और उसकी कॉल ट्रेकिंग पर न हो. बार-बार उसके
अलग-अलग ठिकाने पर एसटीएफ की दबिश होती है और वो उसे दरकिनार कर लगातार फोन पर
प्रेम प्रसंग को जारी रखता है. हो सकता है डायरेक्टर धूलिया ने इसे मॉडर्न एज के
हिसाब से स्टोरी के फैक्ट और फिक्शन के केंद्र में उनके दर्शक हो. गैंगस्टर की
गर्लफ्रेंड के तौर पर सीजन-1 में अहाना कुमरा के पास कुछ खास एक्शन या
डायलॉग नहीं है सिवाय फोन पर प्रेम प्रसंग में एक युवती के. फिल्म ‘लिपिस्टिक अंडर माय बुर्का’ में अहाना
खुले मिजाज की और एक आत्मनिर्भर लड़की दिखी थी. वहां उन्होंने लाइफ पार्टनर को
लेकर अपनी पसंदगी की छाप छोड़ी थी. शुरू से लेकर आखिर तक डिटेक्टिव के रोल में रहे
ऑफीसर पांडे कुछ खास प्रभावित नहीं कर पाते हैं. उनके पास गैंगस्टर को पकड़ने के
लिए टीम से मिले इनपुट के अलावा अन्य कोई दूसरा सोर्स ही नहीं है. स्क्रीन पर
दर्शक उनमें उम्मीद कम निराशा के साथ ज्यादा देखते हैं. इसकी वजह भी है कि ऑफीसर
पांडे जितनी फोर्स और मशीनरी मांगता है उसके अनुरुप डिपार्टमेंट से वो सब नहीं मिल
पाता है. ये सच्चाई भी है कि अपराधियों के पास एक से बढ़कर एक आधुनिक हथियार है. पुलिस आज भी अपराधियों से मुकाबला डंडे और
पुरानी भारी रायफल से ही करते हैं. हाल ही में यूपी में मुठभेड़ के वक्त एएसआई ऑफीसर
की रिवॉल्वर फेल हो गई, तब उसने मुंह से ठांय-ठांय की आवाज निकाली और वो वीडिया
खूब वायरल हुई थी.
कुल मिलाकर डायरेक्टर धूलिया इस वेब
सीरीज को 90
के दशक की पृष्ठभूमि पर दिखाने में कामयाब रहे हैं. चाहे वो गाड़ियों का
इस्तेमाल हो या कॉल ट्रेकिंग रूम, जहां घंटों वक्त बिताने पर हल्का सा
सिग्नल आता है. उस दौर के टेक्नोलॉजी की वास्तविकता दिखाई है. दर्शक खुद को इस सीरीज
के साथ काफी हद तक सहज पाएंगे जिन्होंने सेक्रेड गेम्स और मिर्जापुर में डबल
मीनिंग,
अपशब्दों और
अश्लीलता को लेकर आलोचना की थी.
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