कोई
किताब छिप-छिपकर पढ़ीं ही क्यों जानी चाहिए? जवाब पूरी तरह से नहीं मालूम. ‘संभोग से समाधि की ओर’ टाइटल वाली किताब 5 साल पहले पढ़ी थी.
ओशो की यह किताब जब-तब पढ़ता अकेले में ही पढ़ता. घर पर किसी की नजर न पड़ जाए,
सवाल न पूछे जाए इसलिए पढ़ने के तुरंत बाद उसे बैग में रख देता. तब ओशो को पहली
बार उनकी किताब से जाना. आज दूसरी बार उन पर बनी नेटफ्लिक्स की
वाइल्ड-वाइल्ड कंट्री डॉक्यूमेंट्री से जाना. चापमैन वे और मेक्लैन वे के निर्देशन
में बने पहले सीजन में 6 एपिसोड है. जिसमें सब कुछ ओरिजनल है. चाहे वो कैरेक्टर्स
हो या मीडिया की रिपोर्टिंग या फिर आश्रम में सन्यासियों का ओसो को भगवान रजनीश
पुकारना. डॉक्यूमेंट्री साल 1981 से शुरू होती है. पहले सीन में जॉन सिल्वरटूथ
अमेरिका के ऑरेगन के एंटेलोप टाउन की बसावट बताते हैं. बंजर जमीन पर गिने-चुने
लोगों का निर्वहन. टाउन को डिवलपमेंट का इंतजार. स्क्रीन पर मां आनंद
शीला नजर आती है. वो बताना शुरू करती है और कहानी फ्लैशबैक में चलती है. साल 1968,
शीला 16 साल की थी जब वो भगवान रजनीश से बोम्बे में मिली. आगे शीला रजनीश के
स्वरूप का वर्णन करती हैं- ‘भगवान
को देख लेने के बाद मेरा जीवन पूर्ण हो गया, उनके जीभ पर सरस्वती बैठती थी ’. आगे बताती हैं- वे स्प्रिचुअलिटी,
कैपिटलिज्म और सेक्सुअलिटी पर बोलते थे. मैरून रंग के लिबाज में लिपटे महिला-पुरुष
सन्यासियों का गले मिलना, बिना म्यूजिक पर झूमते रहना और किस्स करना ये सभी सीन
किताब में लिखी बातों को ताजा करती जाती है.
तमाम
दुखों से मुक्ति और सच को जान लेने वाले फिलोसोफी ने रजनीश को दुनियां के अलग-अलग
कोनों से सन्यासी दिए. उनमें ऑस्ट्रेलिया के पर्थ से जेनी और रोजर का भी एक जोड़ा
था. बड़ी तादाद में सन्यासियों के साथ रजनीश बोम्बे से पुणे आश्रम शिफ्ट हुए.
धीरे-धीरे यहां एक इंटरनेशनल कम्यून बनता नजर आने लगा. इस कल्ट के संस्थापक रजनीश
बने. कल्ट और धर्म में फर्क है. ये भी स्पष्ट है कि कल्ट धर्म का शुरुआती चरण है.
सेक्सुअलिटी पर जिस उन्मुक्त नजरिये को लेकर रजनीश आए वो कट्टर हिंदुओं को स्वीकार
नहीं था. सन्यासियों के बीच रजनीश पर चाकू फेंका गया. जैसा कि नाराज जनता नेताओं
पर चप्पले-जूते फेंक जाती है. हालात पॉलिटिकल हो गए. दिल्ली, कच्छ जैसे शहरों में
जगह नहीं मिलने पर रजनीश ने अमेरिका जाना तय किया. जगह तलाशने की जिम्मेदारी
लक्ष्मी की जगह पर्सनल सेक्रेटरी बनी मां शीला को मिली.
रजनीशपुरम, जब अमेरिकी सरकार को अतीत का एक हादसा याद दिला गया
अमेरिका
की धरती पर ये पहली बार था जब कोई बाहरी अध्यात्मिक गुरु आया और वहां की बंजर भूमि
वाले एंटेलोप टाउन को पूरे विश्व के लिए मॉडल बना गया. दरअसल रजनीश के साथ वही लोग
जुड़े जो अपने जीवन में संतुष्ट नहीं थे. मेडिटेशन के दौरान वे जान गए थे अब उनके
लिए सुप्रीम भगवान रजनीश ही है. वहां रजनीशपुरम आश्रम बसाने में सैकड़ों
सन्यासियों को काम मिला. अलग-अलग शिफ्ट में काम करते हुए सन्यासियों ने धरती को
उपजाऊ बनाया, खुद की बिजली बनाई, रहने के लिए कॉम्प्लेक्स, स्कूल, हॉस्पिटल, लैब,
रेस्टोरेंट, बस सर्विसेज, सिक्युरिटी और छोटा सा एयरपोर्ट सब कुछ अव्वल दर्जे का.
हमारे आस-पास के मौजूदा सिस्टम को देखकर जो नाराजागी आती है, वहीं रजनीश के इस
मॉडल के देखकर सुकुन मिलता है. डॉक्यूमेंट्री में रजनीशपुरम के लिए फंडिंग का
जरिया सन्यासियों की मदद, बनाई गई शॉपिंग कम्प्लेक्स में प्रोडक्ट की बिक्री और
इंडिया से लाया गया वो पैसा जिसे वहां सन्यासियों ने लोन के जरिए बटौरा था। लेकिन
कई अमेरीकियों ने रजनीशपुरम की कार्यशैली और गतिविधियों पर एतराज जताया. एक
अमेरिकी महिला ये कहते हुए दिखती है कि ‘वे घुसपैठ कर रहे है, हो सकता है वे हथियारों के साथ न हो लेकिन पैसा
और उनका अनैतिक सेक्स साथ है’.
लेकिन सन्यासियों ने रजनीशपुरम को बचाने में पूरी ताकत लगा दी. वहां हुए चुनावों
में आश्रम के कृष्ण देवा मेयर चुने गए. ये जीत आश्रम पर मंडराते संकट से राहत भरा
था. ओरेगन के जनरल एटॉर्नी फ्रोहेनमेयर ने कहा कि ‘रजनीशपुरम सिक्युरिटी हथियार लैस है,
उसके पास आसू गैस ग्रैनेड भी, किसी तरह की धमकी से सिविल वॉर के हालात हो सकते
हैं.’ अगर अमेरिका को अपनी धरती पर 9/11
हादसे से पहले किसी ने झकझोरा था तो वो मास सुसाइड था. डॉक्यूमेंट्री में जिम
जोन्स का जिक्र किया गया है. बात 1978 की है, जगह गुयाना का जोन्स टाउन. कल्ट लीडर
जिम जोन्स ने सैकड़ों समर्थकों को एक साथ सायनाइड मिले हुए जूस को पीने के लिए
मजबूर किया.
आमने-सामने हुए गुरु-शिष्य
डॉक्यूमेंट्री
में पावरफुल तंत्र का एक आश्रम के साथ संघर्ष दिलचस्प लगता है. आश्रम के
सन्यासियों में बहुत से सन्यासी अमेरिकी थे. जो न सिर्फ अधिकारों के प्रति जागरूक
थे बल्कि रजनीशपुरम के बने रहने की लड़ाई में कई मोर्चों को संभाले हुए थे. उनमें
एक थे स्वामी प्रेम नीरेन. उनके कानून की बेहतर समझ ने रजनीश को एक बार गिरफ्तारी
से भी मुक्त करवाया. पर यहां पूरी लड़ाई में शीला ताकतवर महिला बन कर उभरती है.
चाहे वो लड़ाई सड़क पर हो या कोर्ट और न्यूज रूम में डिफेंड करना हो. उनका जादूई
अंदाज ध्यान खींचता है. इधर, रजनीश से हॉलीवुड का एक ग्रुप जुड़ता है. ग्रुप के
केंद्र में हासिया होती है. गॉड फादर जैसी फिल्म में बतौर अभिनेत्री काम कर चुकी
हासिया रजनीश को कीमती वॉच और अन्य दूसरी चीजें गिफ्ट करती है. साल 1982 में रजनीश
ने धार्मिक नेता के तौर पर विजा के लिए अप्लाई किया. शीला कहती हैं ‘भगवान साइडट्रेक हो गए, दुर्भाग्यवश
उनके स्वभाव में बदलाव आ गया है’.
यहां एक सीन में जेनी को ये कहते हुए सुनते हैं कि शीला डॉ. देवा राज को पसंद नहीं
करती थी. डॉ. देवा राज से हासिया की शादी के बाद उसकी रजनीश तक ज्यादा पहुंच होने
लगी. इससे शीला हारा हुआ महसूस करने लगी. ये डर भी सताया कि उसके भगवान रजनीश खतरे
में हैं. यह खतरा उनके डॉ. देवा राज से ही है. भगवान को बचाने की चाहत में महोत्सव
के दौरान जेनी डॉ. देवा को मॉर्फिन का इंजेक्शन लगाने में कामयाब हो जाती है. इसके
बाद डॉक्यूमेंट्री में कुछ चीजे अस्पष्ट दिखती है. साल 1985 में शीला और उसके
ग्रुप में जेनी व कुछ अन्य सन्यासी आश्रम छोड़ देते हैं. इधर, टीवी पर रजनीश आते हैं. वे करीब साढ़े तीन साल बाद चुप्पी तोड़ते हैं. आश्रम में हत्या के पीछे
शीला और उसके ग्रुप को जिम्मेदार ठहराते हैं. ये सुन जर्मनी में बैठी शीला शॉक को
लगता है. यह पहली बार था जब गुरु-शिष्ट आमने-सामने हुए. रजनीश शीला को फांसीवाद बताते
हैं. वो कहते हैं कि शीला अपराधों के बोझ से सुसाइड कर लेंगी. शीला टीवी पर बयान
देती हैं कि वक्त आ गया है लोगों को आपका सच जानने का कि आप कौन है. आप जीनियस है.
एक तरफ सुंदर व्यक्ति और दूसरी तरफ लोगों का शोषण करने वाले. इस भीतरघात का फायदा
पुलिस और फेडरल एजेंसी जैसी टीमों को रजनीशपुरम बंद करवाने, रजनीश की गिरफ्तारी और
फिर अमेरिका छोड़ने के लिए मजबूर करने में खूब फायदा मिला.
सिर्फ
ओशो ही नहीं हमारे आसपास श्रीश्री रविशंकर व महेश योगी जैसे कई धार्मिक व
अध्यात्मिक गुरु हुए जिन्होंने खुद को प्राचीन दर्शनिक तौर पर स्थापित किया. नाम
से भी और स्वरूप से भी. उनका देश के बड़े बिजनेसमैन की तरह पैसे बनाने और
साम्राज्य स्थापित करने से भ्रम की परत बीच में हमेशा बनी रही. इसके बावजूद उनके
प्रति समर्पण क्यों?
जीवन अस्थिर जरूर है, व्यक्तित्व जरूर अधूरा है. फिर भी हम अपनी आजादी क्यों दे? डॉक्यूमेंट्री में रजनीशपुरम छोड़ने पर शीला कहती है कि उस वक्त
उन्होंने पहली बार
खुद को आजाद पाया. जबकि रजनीश ‘ओशो’ चाहकर भी आजाद नहीं हो पाए. 11 दिसंबर को जन्मे ओशो 19 जनवरी,1990 को
अपने बिस्तर पर मृत मिले. औरों को जिंदगी का पाठ पढ़ाने वाला वह आदमी खुद के लिए
ऐसा सिद्धांत या दर्शन न तलाश सका जिसे ये कहा जा सके कि उन्होंने पूरी जिंदगी जी.
No comments:
Post a Comment