Thursday, 25 October 2018

कई किस्सों से मिलकर बनी वो फिल्म जो अनावश्यक डायलॉग से बचाती है : द आर्टिस्ट

म्यूट फिल्म का नाम सुनकर जो इंटरस्ट जागता है वो स्क्रीन तक ले जाने में इतना सक्षम नहीं होता है. कन्फ्यूजन रहता है दर्शकों में. न जाने अपनी तबीयत की फिल्म होगी या नहीं. टाइम वेस्ट, पैसा वेस्ट. ऊपर से फिल्म का औसतन वक्त दो से ढाई घंटे भी झेलों. इन बातों को दरकिनार करते हुए द आर्टिस्ट फिल्म देख लें तो एक साइलेंट फिल्म को लेकर बनी सारी धारणाएं टूट जाएंगी. और फेसिअल एक्सप्रेशन के नाम पर मुग्ध-मोहित कर देने वाली प्रिया प्रकाश वारियर के प्रशंसकों की फेहरिस्ट भी थोड़ी छोटी पड़ जाएगी.  मिशेल हेजेनाविशुस की डायरेक्टेड ये फिल्म साल 2012 में आई. फिल्म का बैकड्रॉप पर 1920 के दशक का है. तब सिनेमा ब्लैक एंड व्हाइट हुआ करता था. और आर्टिस्ट अपने आर्ट से उसमें कलर भरते थे. यहां लीडिंग रोल में जॉर्ज वेलिनटाइन हीरो है. थियेटर में तालियां और उसके बाहर प्रशंसकों की भीड़ का सीन जॉर्ज के स्टारडम को बयां कर रही होती है. जॉर्ज जिस भीड़ के सामने बाउंसरों के घेरे में अदाए बिखेर रहा होता उसकी झलक पाने और ऑटोग्राफ लेने के लिए ठसाठस भीड़ से  एक युवती अचानक बाहर निकल आती है. भीड़ से अलग पाकर लड़की शांत और संकोच वाले भाव में दिखती है. जॉर्ज युवती के पास आता है. ऑटोग्राफ देता है. हंसता चेहरा जैसे प्रशंसकों की तरफ उठाता है वैसे ही युवती उसके चेहरे को चुम लेती है. ये तस्वीर अगले दिन सभी अखबारों की सूर्खियां बन जाती है. ये पूरा सीन एक स्टार के स्टारडम का औरां और फैंस फोलोविंग को बताता है.
जॉर्ज का राज न सिर्फ प्रशंसकों के दिलों तक है बल्कि किनोग्राफ स्टूडियो पर भी है. उधर अखबारों के जरिए चर्चा में आई प्रशंसक युवती भी किनोग्राफ स्टूडियो विजिट करती है. बाय चांस उसे वहां ऑडिशन का मौका मिलता है. यहां जॉर्ज और उस युवती की ये दूसरी मुलाकात होती है. फिल्म में आगे युवती की महत्वाकांक्षा दिखाई गई है. वो भी स्टार बनना चाहती है. दोनों स्क्रीन पर एक साथ दिखने लग जाते हैं. युवती पेप्पी का डांस दर्शकों को जॉर्ज के बजाय ज्यादा अच्छा पसंद आने लगता है. पसंद के आधार पर किनोग्राफ स्टूडियो फिल्में बनाना शुरू कर देता है. और शुरू होता है अनुभवी एक्टर जॉर्ज का स्टार्डम ग्राफ तेजी से गिरना और पेप्पी के स्टार्डम का ग्राफ ऊपर की ओर बढ़ना है. डायरेक्टर, जॉर्ज से कहता है कि पब्लिक नया चेहरा देखना चाहती है. पर जॉर्ज उस बात को दरकिनार करते हुए खुद ‘द टिअर्स ऑफ लव’ फिल्म डायरेक्ट-प्रोड्यूस करता है. पर दर्शकों को पसंद नहीं आती. नाकामयाबी पर जॉर्ज शराब पीता है। जरूरतों को पूरी करने के लिए अपनी महंगी ड्रेस बेच देता है. घर की चीजें नीलामी करता है. कहानी का ये हिस्सा मोहित सूरी की डायरेक्टेड आशिकी-2 में भी देखने को मिलता है, जहां पॉपुलर सिंगर राहुल जयकर की मदद से रेस्टोरेंट में गाने वाली आरूही बड़ी सिंगर बन जाती है.


डायरेक्टर मिशेल की फिल्म को देखते वक्त लगता है कि कई फिल्मों के किस्सों को  जोड़-जोड़ कर बनाई है. चाहे जॉर्ज द्वारा एक साल से अपने ड्राइवर क्लीफ्टन को सैलरी नहीं दिए जाने के बदले में उसे वो कार देकर अकेला छोड़ देने की बात कहता है. यहां क्लीफ्टन की वफादारी डेविड धवन की डायरेक्टेड स्वर्ग फिल्म में नौकर कृष्णा और उसके मालिक मिस्टर. कुमार के बीच रिश्ते वाले सीन की याद दिलाती है। या फिर जॉर्ज का पालतू कुत्ता जो फिल्म के शुरू से लेकर अंत तक उसके साथ दिखता है. वो कुत्ता उसकी स्टार्डम में पॉजीटिव ‌इफेक्ट है. कुत्ता अपनी समझदारी से जॉर्ज की जान बचाता है। उसे देख जैकी सैरॉफ की तेरी मेहरबानियां फिल्म में उसके पालतू कुत्ते की चतुराई नजर आती है.
फिल्म अगर किसी कंटेंट पर केंद्रित है तो वो है स्टार सिस्टम. जो सालों से किसी प्रोडक्शन हाउस या स्टूडियों पर किसी एक स्टार या गिने-चुने अभिनेताओं का वर्चस्व रहा है. लेकिन अब दर्शकों के बीच अच्छी और बुरी फिल्मों में फर्क करने की समझ पैदा हो गई है. यहीं वजह है कि आज सिर्फ सिनेमा ही नहीं बदला उसका दर्शक वर्ग भी बदल गया है.  

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