Tuesday, 9 October 2018

इलेक्शन-2018 : ‘मोदी लहर’ को राजस्थान की अंधड़ का साथ मिलेगा !


कहते हैं जब धरती पर एक समान ताकतें आमने-सामने हो तो उनमें अपने वर्चस्व की लड़ाई होती है और उनमें एक-दूसरे की जरूरत बनकर सभी धारणाओं को तोड़ने की भी जद्दोजहद होती. खासकर जो वर्षों से कामय हो. अब देखना यह होगा राजस्थान चुनाव 2018 रूपी धरती पर है पीएम मोदी की कथित ‘मोदी लहर’ और राजस्थान की अंधड (सत्ता का ट्रेंड) के बीच कौन, किस पर कितना भारी पड़ता है या उन धारणाओं को तोड़ देगी जो इसके प्रहरी है. 
तारीख 6-अक्टूबर-2018. वक्त दोपहर के ठीक 2 बजे. जगह अजमेर. टीवी मीडिया ने पीएम नरेंद्र मोदी की आमसभा में टेंट के फटने पर न्यूज फ्लैश की- ‘आंधी से फटा टेंट’. पर पीएम मोदी बोले थे- ‘लो आ गई जीत की आंधी’. वो यहीं नहीं रूके. 53 हजार बूथों की जीत पर चुनाव की जीत सुनिश्चित की बात पर जैसे ही उन्होंने पॉज लिया वैसे ही सभा स्थल कायड़ विश्राम स्थली में जोर से हवाएं चलने लगी. सभा में बैठी लाखों लोगों की भीड़ हवा के साथ आए रेत के कणों को आंखों से निकाल पाती, तभी पीएम बोले- ‘देखिए प्रकृति भी हमारा साथ देने के लिए आई है. विजय की आंधी भी चल पड़ी हैं. राजस्थान की धरती में जब धरती माता आशीर्वाद देने आती है तो विजय निश्चित हो जाती है. और विजय को लेकर आगे बढ़े. पूरे संकल्प को साकार करने के लिए चल पड़ें.’ रेत के कणों से जनता राहत पाकर आंखें खोलते ही पाती है कि पीएम मोदी स्पीच खत्म कर चुके है. अभिवादन के अंदाज में हाथ हिलाते हुए मंच से जा रहे है. वैसे ये पूरा नजारा किसी फिल्मी सीन से कम नहीं लग रहा था.

पीएम मोदी यहां सीएम वसुंधरा राजे की ‘राजस्थान गौरव यात्रा’ के समापन पर आए थे. अपने चीर-परीचित अंदाज में मोदी कांग्रेस पर खूब बरसे. उन्होंने जनता को ऐसा पाठ पढ़ाया की उनके लिए कांग्रेस और विफलता में फर्क करना भी कुछ देर के लिए मुश्किल हो गया. हालांकि पार्टी में करीब 74 दिनों तक चले प्रदेशाध्यक्ष के उम्मीदवार पर तनाव को भुलाकर पीएम मोदी ने वसुंधरा के सुशासन में कसीदे पढ़ीं. उन्होंने वसुंधरा सरकार की तारीफ की. कहा, ये सरकार 63 दिनों की यात्रा में जनता को हिसाब दे रही है. मंच का ये फ्रेम अतीत में झांकने को मजबूर कर रहा था. वो दिन, तारीख 11-09-2013 का ही था. जगह जयपुर में अमरूदों के बाग, जहां प्रदेशभर में 78 दिनों तक चली सुराज संकल्प यात्रा का वसुंधरा राजे ने समापन सम्मेलन किया. तब नरेंद्र मोदी भाजपा चुनाव अभियान के प्रमुख थे. और भाजपा की तरफ से साल 2014 के आम चुनावों में पीएम कैंडिडेट. उस वक्त उन्होंने वसुंधरा राजे और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के साथ मंच सांझा करते हुए कहा था- ‘आ रही है परिवर्तन की आंधी, राजस्थान रंग लाएगा तो देश भी दम दिखाएगा’. उन्होंने मंच से जनता को एबीसीडी का मतलब भी बताया था. ए यानी आदर्श घोटाला, बी यानी बोफोर्स-भंवरी देवी, सी यानी कोयला-कॉमनवेल्थ घोटाला और डी यानी डिफेंस का भ्रष्टाचार-दामाद का कारोबार. तब वे रूपया के सेहत पर भी बोले थे. उन्होंने कहा था गुजराती और राजस्थानी से बेहतर रूपया की कीमत कौन जानता है? बहरहाल मोदी पीएम रहते हुए अजमेर की आमसभा से रूपया पर कुछ नहीं बोले. पेट्रोल-डीजल के कम किए गए दामों का जिक्र जरूर किया गया. पर इस फैसले से ट्रेडिंग में सरकारी तेल कंपनियों में निवेशकों के बीच नुकसान से मचे बवंडर का संकेत तक नहीं किया.
देखा जाए तो प्रदेश में सीएम वसुंधरा के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी का भी माहौल है. इसे 11 माह पहले हुए अजमेर व अलवर लोकसभा सीट और विधानसभा की मांडलगढ़ सीट पर उप-चुनाव के नतीजे से टोह लगाया जा सकता है. पीएम मोदी बुलेट ट्रेन चलाने की बात करते हैं लेकिन प्रदेश में 15-16 दिन तक रोडवेज नहीं चल पाती. केंद्र-राज्य की सरकारें डिजिटल की बातें करती है. लाखों-करोड़ों रूपए खर्च कर बीकानेर में डिजि राजस्थान पर प्रोग्राम किया जाता है. पर हर एग्जाम कंडक्ट करवाने के लिए सरकार पूरे-पूरे दिन इंटरनेट शटडाउन कर देती है. पांच साल पहले नरेंद्र मोदी ने प्रदेश में गहलोत सरकार को सांप्रदायिक दंगे और झड़पों पर घेरा था. लेकिन वसुंधरा सरकार के शासन में हुई लिंचिंग पर दम तक नहीं भरा. पीएम होने के नाते मोदी वसुंधरा सरकार को हिदायतें दे सकते थे. लेकिन माहौल चुनाव का है. ये माहौल कुछ मेहमान की तरह है. जैसा कि घर आए मेहमानों के बीच घर की शिकायतें नहीं की जाती. ठीक यही फॉर्मूल यहां राजनीति में भी अपना लिया गया.

फलसफा यही है कि मोदी आज तक कथित ‘आंधी’ और ‘लहर’ की ही बातें करते आ रहे हैं. पर कमबख्त राजस्थान की जमींनात तो धोरों की है. यहां आंधी और लहर की जगह अंधड़ शब्द उपर्युक्त है. इसलिए भी की यहां टीले टिकते नहीं. जिन हवाओं के साथ ये टीले नीत नये मुकाम हासिल करते रहते हैं. अब देखना ये होगा कि ‘मोदी लहर’ को राजस्थान की अंधड़ (सत्ता का ट्रेंड) का कितना सहारा मिलता है? क्यों कि यहां की सत्ता पर तयशुदा वक्त पर सियासी दलों का कब्जा होता रहा है. साल 1993 के बाद से हुए पांच चुनावों के सत्ता में कभी बीजेपी रही है तो कभी कांग्रेस. पिछले डेढ़-दो दशक में सत्ता का कुछ ऐसा ही ट्रेंड हिमाचल व उत्तराखंड में बीजेपी और कांग्रेस के बीच, केरल में सीपीआई (एम) और कांग्रेस+यूडीएफ के बीच में भी देखने को मिलता है. हमें चाहिए की हर पॉसिबिलिटी का वेलकम करें. एबीपी न्यूज और टाइम्स नाउ जैसे चैनल्स लगातार जनता के मूड को ओपीनियन पोल पर सर्वे रिपोर्ट लेकर आ रहे हैं कि विधानसभा की 200 सीटों पर कौन सी पार्टी, कितने सीटों पर कब्जा करने वाली है. इन सबके बीच एक साफ, ईमानदार और नई ऊर्जावान सरकार बनाने में ओपीनियन पोल अहम हो जाता है. 

No comments:

Post a Comment

अनवर का अजब किस्सा : ड्रिमी वर्ल्ड का वो हीरो जो मोहब्बत में जिंदगी की हकीकत से रूबरू हुआ

बड़ी ही डिस्टर्बिंग स्टोरी है...एक चर्चा में यही जवाब मिला. डायरेक्टर बुद्धदेव दासगुप्ता की नई फिल्म आई है. अनवर का अजब किस्सा. कहानी-किस्स...