Saturday, 17 March 2018

एक साइलेंट फिल्म जो आप में कोलाहल भर दे - मातृभूमि : ए नेशन विदाउट वुमन



जीत की डगर में पसंदीदा टीम की मुश्किलें खेल प्रेमियों को बैचेन कर देती है। नतीजे हार में बदलने पर टीवी तक तोड़ दिए जाते हैं। ऐसी ही मनोदशा मातृभूमि: ए नेशन विदाउट वुमन में देखने को मिलती है। फर्क की स्क्रीन पर मैच की जगह पोर्न फिल्म की कैसेट के प्ले होने न होने की ऊहापोह है। जिसे देखने के लिए गांव के अभिजात और निम्न वर्ग के युवा एक जगह पर जुटे हैं। पंकज झा की निर्देशित ये फिल्म उस सोच की देन है जब बालिका नवजात शिशु मृत्यु दर अपने वक्त के सबसे ऊंचे पायदान पर है (पिछले 100 साल में 340 लाख बालिकाएं मृत या लापता का आंकड़ा है)। पहले सीन में सामाजिक कुरीति है, जहां बेटे की चाहत में पिता बेटी के जन्म की पहली सुबह उसे दूध में डूबोकर मार देता ये समझकर कि उसकी बलि से घर में बेटे का जन्म होगा। पित्तृात्मक सोच में यह लोभ है। पहला आर्थिक तो दूसरा वंश चलाने का।


शादी से पहले बेटियां घर की दीवार की तरह बढ़ रही होती है। ऐसा सुना तो नहीं लेकिन हर घर में महसूस जरूर किया जा सकता है।  मर्दवादी सोच जिसे अभी तक समस्या मानकर उसे मिटाता आ रहा था। उसने यह सोचा भी न होगा कि उसके स्वार्थ का ये हल एक दिन अपने आप में समस्या बन जाएगी। एेसे ही नतीजे से जूझता एक गांव जहां हर घर में सिर्फ मर्द है। महिला के नाम पर दीवार पर टंगी एक तस्वीर दिखती है। जो पांच बेटों के पिता रामचरण की पत्नी की है। पांच में से चार बेटों का अपने पिता के प्रति गुस्सा है। इसलिए कि आर्थिक संपन्नता के बावजूद उनकी शादी नहीं हो पा रही। उनकी जावानी का क्रोध पिता को इस कदर सालता है कि वह उनसे नजरें तक मिलाने में खुद को असमर्थ पाता है। अपने वक्त के जिस दौर में फिल्म बनी है वहां पोथी-पत्रा वाले पंडित की भूमिका बढ़ जाती है। पंडित जगन्नाथ का एक वकतव्य- अपने गांव में क्या आस-पास के गांव में 10-12 साल की लड़की छोड़ों 80 साल तक की बुढ़िया नहीं है?


कलकी के दिखने के बाद रामचरण के बड़े बेटे राकेश की शादी के लिए लड़की की तालाश पंडित जगन्नाथ के लिए खत्म हो जाती है। यहां से कहानी अति नाटकीय की शक्ल लेते हुए महाभारत के द्रोपदी के पांच पतियों वाले किस्से की याद दिलाती है। गांव में 15 साल बाद पहली शादी का अवसर आता है। लेकिन इससे पहले अभी तक जो पिता अपनी बेटी को जन्म से लेकर जावानी तक को छीपा कर रखने वाला रक्षक होता है कुछ देर बाद सौदागर बन जाता है। एक लाख में एक के साथ विवाह, पांच लाख में पांच के साथ और छह के साथ सोने के लिए छह लाख रुपए की कीमत चुकाकर समाज का ताकतवर इंसान पुरुष धर्म व रीति-रिवाजों का सहारा लेकर खुद को इज्जतदार और शरीफ बना लेता है। यहां ये कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि शादी महज जिस्म बेचने और खरीदने का पेशा बन जाता है जिसे समाज की हिमायत है। शादी की पहली रात पिता समेत पांचों बेटों की बैठक तय करती है कौन किस-किस दिन संबंध बनाएगा? जिसने ज्यादा पैसे चुकाएं वही समारोह का फीता काटेगा। फिल्म में सब कुछ अस्वीकार नहीं है। चूंकि पति का कर्तव्य पत्नी की रक्षा करना है। वहां रामचरण के सबसे छोटे बेटे और कलकी के पति सूरज को एक आदर्श मर्द के तौर पर देखा जा सकता है।

फिल्म में रामचरण के नौकर रघु की हत्या के बाद उसके पिता-चाचा द्वारा बदले की भावना की उस सोच की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। दोनों की समझ में दुश्मन की किस जगह पर चोट की जाए की उसे सबसे ज्यादा तकलीदेह लगे? इसलिए घर से भागने में नाकाम कोशिस में कलकी को अस्तबल में जंजीर से बांध दिए जाने की रात वे दोनों उसके साथ जबरन संबंध बनाते हैं। इसे एक फॉर्मूले से समझे। स्त्री यानी इज्जत, इज्जत यानी परिवार की इज्जत और परिवार की इज्जत का मतलब समुदाय-बिरादरी की इज्जत।  जिसे हमने आजादी के वक्त भारत-पाकिस्तान को पलायन के लिए घर से निकले परिवारों के साथ बेटियों, बहनों व महिलाओं को  उग्र हिंदू-मुस्लिमों द्वारा अपहृत कर उनके साथ जबरन संबंधों से अमिट जख्मों के दर्द दिए।


No comments:

Post a Comment

…और कितनी मासूम लोगों की जानें लेगी भगदड़?

आंध्र प्रदेश के वेंकटेश्वर मंदिर में एकादशी पर जुटी भीड़ के बीच भगदड़ मचने से कम से कम 9 लोगों की मौत हो गई। शासन-प्रशासन रेस्क्यू और घायल ल...