पूछूँ तो मैं ज़रा. Because stillness reveals the secrets of eternity / My notes on films, books, news and more.
Friday, 5 August 2016
गरीबी और कुप्रथा के आगे बेबस हो जाता है इंसान !
न जाने क्यों हमारा समाज कुप्रथाओं को सहेज कर रखता है? उसी के नियम कायदे से चलता है। एक चादर मैली सी फिल्म भी एक कुप्रथा पर आधारित है। जिसमें न केवल महिला पिसती है बल्कि पुरूष भी। पंजाब में पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली इस प्रथा को आखिर हम क्यों इसे अभिशाप मानने की बजाय वरदान मान बैठे है? जब एक विधवा भाभी की शादी उसके देवर से हो जाए तो ये रिश्ता क्या बनता है? समाज इसे क्या नाम देता है? इन्हीं संबंधों पर बुनी गई है एक चादर मैली सी फिल्म।
राजेंद्र सिंह बेदी के उपन्यास एक चादर मैली सी पर डायरेक्टर खुशवंत ढढ्ढा ने वर्ष 1986 में फिल्म बनाई। ठीक इसी टाइटल पर। चादर डालने की प्रथा समाज पर हावी है। चाहे वो मन, विचार और समझ के खिलाफ ही क्यों न हो? फिल्म में पति-पत्नी के रिश्ते, देवर-भाभाी का हंसी मजाक, धर्म-भगवा चोले की आड़ में, सास का विधवा बहु के प्रति सोच और भाई-बहन का ऐसा जोड़ा जो पिता की मौत के बाद चाचा को पिता की शक्ल में अपना पाएंगे जैसी पहलुओं को एक चादर मैली सी फिल्म छू कर निकलती है।
फिल्म में दिमाग पर जोर नहीं डालते से मिलता जुलता डायलाॅग है। त्रिलोक (कुलभूषण खरबंदा) का ये डायलॉग दिमाग पे बोझ नहीं डालते। जो अक्सर अपनी पत्नी राज्जो (हेमा मालिनी) से कहता है। डायरेक्टर खुशवंत ने बेहद साधारण सी कहानी में संवेदनशील प्रथा को दिखाया है। हंसते-बढ़ते पंजाब में चादर डालने की प्रथा उसी जहर की तरह है। जैसे हाल ही में आई अभिषेक चौबे की डायरेक्टेड उड़ता पंजाब फिल्म में सफेद जहर के इस्तेमाल से पूरा परिवार, समूचा समाज इसकी जकड़ में है।
घर नहीं दाने, मां चली पिसाने राज्जो का अपने पति त्रिलोक पर ये तंज फिल्म के इस परिवार की गरीबी को बयां कर देती है। वहीं पति जो दिन में तांगा चलाता है। और रात में फुर्सत से मुर्गा खाने और दारू पीने की जिद करता है। मना करने पर पत्नी को पीटता भी है। बड़े भाई की पिटाई से भाभाी को बचाने के लिए देवर मंगला उसी तरह बीच में आता है जैसे कोई बेटा अपनी मां को बचाने के लिए। त्रिलोक की एक बेटी, एक बेटा है। घर में एक बूढ़ा-अंधा बाप और अपने बच्चों की चाह में अंधी बूढ़ी मां है। त्रिलोक की मौत के बाद इस परिवार की जिम्मेदारी छोटे भाई मंगला पर आ जाती है। मंगला की गैर मौजूदगी में अार्थिक तंगी परिवार को बर्तन और गहने बेचकर राशन खरीदने पर मजबूर कर देती है। फिर भी रूढिवादी सोच विधवा बहु को घर से बाहर निकलकर कमाने की इजाजत नहीं देती। सास अक्सर विधवा बहु को अशुभ मानकर गरियाती है। उधर मंगला एक बंजारन रानी (पूनम ढिल्लो) से प्यार करने लगता है। लेकिन गांव के पंचों के चादर डालने का फैसला तीन-तीन जिंदगियाें को सदमे में ले जाता है।
इज्जत का सवाल बाद में आता है पहले पेट का ये बात राज्जो की पड़ोसन राज्जो से कहती है। गरीबी के आगे लाचार विधवा मां अपने जवान बेटी के बेहतर भविष्य के ख्वाब में क्या-क्या सोचने लग जाए विश्वास ही नहीं होता। फिल्म में राज्जो अपनी बेटी के लिए खुद को बेचने की बात करती है। तो कभी बेटी का सौदा करने की सोचने लगती है। खुद से बाते करने लगती है। ऐसा लगता है मानों गरीबी ने उसके अच्छे-बुरे के सोचने समझने की शक्ति पर चादर डाल दिया हो। या फिर अंधे पिता का ये कथन- चादर डालने का राज हम गरीबों की चादर पर चादर डालना है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अनवर का अजब किस्सा : ड्रिमी वर्ल्ड का वो हीरो जो मोहब्बत में जिंदगी की हकीकत से रूबरू हुआ
बड़ी ही डिस्टर्बिंग स्टोरी है...एक चर्चा में यही जवाब मिला. डायरेक्टर बुद्धदेव दासगुप्ता की नई फिल्म आई है. अनवर का अजब किस्सा. कहानी-किस्स...

-
बड़ी ही डिस्टर्बिंग स्टोरी है...एक चर्चा में यही जवाब मिला. डायरेक्टर बुद्धदेव दासगुप्ता की नई फिल्म आई है. अनवर का अजब किस्सा. कहानी-किस्स...
-
The Test: A New Era for Australia’s Team विश्व में लॉकडाउन की वजह से क्रिकेट नहीं खेला जा रहा . तब स्टेडियम से बाहर बॉल की शाइनिंग पर ब...
-
राजस्थान में बनी फिल्मों में बवंडर अल्टीमेट हो सकती है। ये फिल्म राजधानी जयपुर यानी पिंक सिटी से शुरू होती। रिक्शे पर सवार रवि और ऐमी ...
No comments:
Post a Comment