Wednesday, 9 March 2016

नंबर वन बनने की होड़ में मेडिटेशन की जरूरत किसको ?

 “जीवन ऐसा कुछ नहीं है जिसके प्रति बहुत गंभीर रहा जाए . जीवन तुम्हारे हाथों में खेलने के लिए एक गेंद है . गेंद को पकड़े मत रहो|” (श्री श्री रवि शंकर)



काफी दिनों से चला रहा लिखने का उपवास आज टूट गया। दूसरे को नीचा दिखाकर खुदा अव्वल बताने की होड़ टीवी विज्ञापनों में प्रोडक्ट्स के समय देखने को मिलती थी। और अब राजनीति में चुनाव के दौरान। लेकिन "पीस ऑफ माइंड'' के नाम पर कब से शुरू हुआ मालूम नहीं? मेडिटेशन के नाम पर आर्ट ऑफ लिविंग ने ब्रह्माकुमारी को दोयम दर्जा दे दिया। इस बात को पहले एक स्टूडेंट ने कहा फिर उसके टीचर ने समर्थन किया। मैं यहां ज्यादा आगे बढ़ू इससे पहले बता दूं कि हम इनकी मेंबरशिप इसलिए लेते है ताकि खुद को समझ सकें। अपनी शक्तियों का अनुमान लगा सकें। अपने आप पर काबू रख सबकों सम्मानता के साथ देख सके। पर यहां तो अपने आपकों बेहतर बताने की होड़ लगी है। खैर बात यहीं खत्म नहीं होती। टीचर ने आगे कहा 35 साल पूरे होने पर आर्ट ऑफ लिविंग की तरफ से यमुना तट पर वर्ल्ड कल्चरल फेस्टिवल 11 मार्च से शुरू किया जा रहा है। जिसमें राजस्थान से 1340 कलाकार ग्रुप में घूमर की प्रस्तुति देंगे। बीकानेर से 40 शामिल होंगे। पूरे विश्व से 155 देशों के लोगों की मौजूदगी की बात कही। तीन दिन का फेस्टिवल। मन से एक सवाल जागा। बैचारी यमुना का सोचों क्या हाल होगा? पर्यावरण की तरफ संकेत करते हुए पूछा तो टीचर ने जवाब दिया। हम तो हमेशा पर्यावरण के लिए पौधा रोपण कार्यक्रम चलाते रहते है। कमाल है दोस्तों पौधे सार्वजनिकता के नाम पर लगाए जाते है और उन्हें यदा-कदा दरकिनार करने की बात आती है तो निजता का हवाला दे दिया जाता है। यमुना किनारे फेस्टिवल आयोजन पर एनजीटी ने नाजूक इकोसिस्टम नुकसान पर आशंका जताई है। ये भी याद रहे कि “छठ पूजा’’ के दौरान यमुना को नुकसान पहुंचने पर सवाल उठते रहे हैं। तो फिर यहां भी श्रीश्री रविशंकर जी के इस प्रोग्राम को लेकर सवाल खड़े होना लाजिमी है।


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