प्यार छिपा कर होता है. खासकर भारत में. उसकी तमाम अनुकूल वस्तुएं भी एक तरह के पर्दे के पीछे बिकती है. ऐसे कल्चर वाले देश में बॉलीवुड की पिक्चर आई है. मेड इन चाइना. परिंदा जोशी की नेमसेक नॉवेल पर आधारित फिल्म को मिखिल मुसाले ने डायरेक्ट किया है. यहां हीरो के किरदार में राज कुमार राव है. रघुबीर उर्फ रघु मेहता. पत्नी और एक बच्चे का पिता वाला रघु गुजराती व्यापारी है. जीवन के 13 बिजनेस में सभी आइडिया फ्लॉप रहे. मगर हिम्मत नहीं हारा. स्क्रीन पर रघु बेहद आशावान दिखता है. पॉजीटिव सोचता है. वर्तमान की बेरोजगारी और धीमी अर्थव्यवस्था के बीच उसका किरदार सबल देता है. जीवन में बनने और कुछ करने का. फिर सारा ध्यान एकदम से उन आइडियाज पर केंद्रित हो जाता है. बुरे दिनों के कथानक में अगर रघु बी-ग्रेड है तो देवराज ए-ग्रेड है. देवराज रघु का कजन भाई है. जो उसके मुकाबले कामयाब है और सफल व्यापारी भी. लेकिन एक नागरिक के नाते रघु देश की दो चीजों से अच्छी तरह वाकिफ है. पहला भारतीय लोगों को क्या चाहिए? और दूसरा हमारे इंडिया में प्रोब्लम क्या है?
फिल्म का पहला सीन चाइनीज डेलिगेशन का इंडिया टूर है. डेलिगेशन में चाइनीज जनरल है. जो एक प्रोग्राम में शामिल होता है. कामोत्तेजना के लिए डिब्बाबंद टाइगर पेनिस मेजिक सूप (जो वायग्रा से दस गुना ज्यादा पावरफुल है) का सेवन करता है और बंद कमरे में संदिग्ध हालात में मर जाता है. इंडो-चाइना की संयुक्त जांच बैठती है. उस जांच की आग रघु पर पड़ती है. और यहां से रघु की कहानी खुलती चली जाती है. उसकी चटाई का नाकामयाब कारोबार, चाइना जाकर किसी तरह का बिजनेस लाना, तन्मय शाह (परेश रावल) और कथित टाइगर पेनिस सूप सप्लायर हाओली से मुलाकात. बीते एक-डेढ़ दशक से देश की हर छोटी-बड़ी चीजों पर मेड इन चाइन नजर आ रहा है. चाहे वो नहाने का मग हो या मोबाइल का चार्जर. ऐसे प्रोडक्ट की तादाद इतनी बढ़ गई कि कुछ कथित राष्ट्रवादी संस्थाएं और संगठन इनकी होली जला कर बहिष्कार तक करती है. हाओली अपने एक सवाल में रघु से पूछता है- भारतीय लोगों को क्या चाहिए? रघु- अच्छी सड़के? जवाब- सेक्स! हाओली- “पश्चिमी देशों में सब पैसों के बारे में सोचते हैं. पर भारत और चीन में सब सेक्स के बारे में सोचते रहते हैं. अगर तुम ये प्रोडक्ट भारत में बेचोगे तो हम दोनों करोड़पति बन जाएंगे”.
पब्लिक फोरम में सेक्सोलॉजिस्ट डॉ.वर्धी की स्पीच से रघु के प्रोडक्ट को एक तरह से भरोसा मिलता है. जो बाजार में खूब बिकता है. इसकी बड़ी वजह ये भी है कि हमारे समाज में यौन समस्याओं और जरूरतों पर डॉक्टरों की सलाह बेहद कम ली जाती है. बजाय इसके कि वे (पुरुष-महिला) केमिस्ट से सीधे दवा ले आते हैं. और अगर प्रोडक्ट डॉक्टर से प्रमाणित हो तो उसका इस्तेमाल और भी आसान बन जाता है. डॉ.वर्धी के किरदार में यहां बोमन ईरानी है, जो हाल ही में आई ‘खानदानी शफाखाना’ फिल्म के मैसेज को आगे बढ़ाते हैं- ‘बात तो करो’. यानी सेक्स संबंधी बीमारियों पर खुलकर बात तो करो. तो क्यों न इसे भी अन्य बीमारियों की तरह सहजता से लिया जाए? फिल्म में बताया गया है कि इसका अभाव हमारे जीवन में हताशा, तलाक, घरेलू हिंसा, शोषण और बाल उत्पीड़न समेत न जाने कई अपराधों को जन्म देता है.
राजकुमार राव फिल्म के फिल्म के हर सीन में फिट बैठते है. कारोबार की सच्चाई मालूम चलने पर पत्नी रूक्मणि (मौनी गांगुली) नाराज हो जाती है. इससे आहत रघु को ऐसे कारोबार से घृणा हो जाती है. बिजनेस-फंडिंग सभी को गलत ठहराता है. जैसे कि जो समाज को मंजूर नहीं वो करना ही नहीं चाहिए.शायद इसी सामाजिक दबाव के आवेश में आकर पूर्व में राजस्थान के रिटायर्ड जज एम.सी शर्मा ने यह कहा कि- ‘मोर मोरनी के साथ सेक्स नहीं करता है, मोर ब्रह्मचारी है. जब मोर रोता है तो उसके आसुओं को पी कर मोरनी प्रेग्नेंट होती है.’ इस डायलॉग को दोहराते हुए जवाब में जांच टीम के सामने डॉ.वर्धी ये कहते नजर आते हैं कि-‘यह हमारा सोच है.’ आखिर में फिल्म हमें सेक्स पर बात करने की झिझक पर इस सवाल के साथ छोड़ जाती है कि ‘हम 130 करोड़ बने कैसे?’
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