Saturday, 18 August 2018

गोल्ड : द ड्रीम दैट यूनाइटेड ऑवर नेशन- 200 सालों की गुलामी पर गोल्ड की चमक में कितना सुकुन!

कहानी- जोश की, जुनून की, ज़ज्बे की और सेंटर फॉरवर्ड प्लेयर की जगह फैक्ट्स में टकराहट की 



एक पीढ़ी ने सपना देखा दूसरे ने साकार किया.  गोल्ड : द ड्रीम दैट यूनाइटेड ऑवर नेशन फिल्म की ये लाइन कानों में पड़ते ही दिल में समा जाती है. सीना चार गुना चौड़ा हो जाता है. और हो भी क्यों न? जब पूरे विश्व की निगाहे हमारी जीत पर टिकी हो. आजादी के बाद 1948 में हुए लंदन ओलंपिक में हमारे देश की हॉकी टीम ने पहली बार हिस्सा लिया और गोल्ड जीत लिया. यही सार है रीमा कागती की डायरेक्टेड गोल्ड : द ड्रीम दैट यूनाइटेड ऑवर नेशन फिल्म का. फिल्म हॉकी के इतिहास से शुरू होती है. और अपने फैक्ट्स से दर्शकों को जोड़ती चली जाती है. लीड रोल में तपन दास (अक्षय कुमार) है. आजादी से पहले भारतीय खिलाड़ी ब्रिटिश इंडिया के नाम से बनी टीम में खेला करते थे. तपन दास इसी टीम के जूनियर मैनेजर है, जहां वो खुद को मैनेजर कम कुली बताकर परिचित करवाते हैं. साल 1936 में जर्मनी में खेले जा रहे ओलंपिक के फाइनल मैच से ठीक पहले एडोल्फ हिटलर का भारत के खिलाफ भाषण आता है. और उस भाषण के खिलाफ जर्मनी में विरोध होता है. नारेबाजी होती है. तपन को भी तिरंगे का उस वक्त अहसास होता है जब नाराज भारतीयों की भीड़ को ब्रिटिश इंडिया टीम की बस पर झंडा फहराने की कोशिश में वहां की पुलिस की लाठीचार्ज को सहना पड़ता है. तिरंगे के नीचे गिरने से पहले ही वो उसे लपक लेता है. यहीं से शुरू होती सम्मान से तिरंगे को लहराने की ज़िद. ओलंपिक में आजाद भारत के नाम गोल्ड की ज़िद.


यूं तो आजादी की लड़ाई के साथ-साथ विभाजन के वक्त की साइड बाय ढेरों सारी कहानियों-किस्सों पर फिल्में बनी है. डायरेक्टर रीमा की ये फिल्म भी उन्हीं का हिस्सा है. फिल्म के अच्छे-खासे वक्त को विभाजन के दंश से जोड़ कर दिखाया है. अखबार के जरिए जब तपन को मालूम चलता है कि ब्रिटिश भारत को मुक्त कर देंगे और 1948 का ओलंपिक लंदन में खेला जाएगा तो वह सीधा आईएचएफ के पास पहुंचता है. ताकि आजाद भारत की हॉकी टीम बना सके. अपने सपनों की टीम तैयार कर सके. लेकिन इतिहास के पन्ने पर एक और घटना होनी बाकी थी. भारत-पाकिस्तान का बंटवारा. इस बंटवारे के साथ तपन की बनाई टीम भी दो हिस्सों में बंट जाती है. टीम में कप्तान इम्तियाज शाह समेत कई बेहतर मुस्लिम खिलाड़ियों को अपने मुल्क पाकिस्तान लौटना पड़ता है. तब तपन का वो डायलॉग बेहद गौर करने लायक है जब वो ये कहता है कि- “लाइन खींचने वाले को मालूम ही नहीं कि लाहौर किधर और लुधियाना किधर है”. यहां कमलेश्वर की नॉवेल कितने पाकिस्तान में लिखी वो लाइन  याद आती है जिसमें जुलाई, 1947 में माउंटबेटन ने बैरिस्टर सिरिल रेडक्लिफ को देश को बांटने का काम सौंपा था. जो न समाजशास्त्री था और न भूगोलविद. पांच हजार साल पुरानी सभ्यता को चंद दिनों में तोड़ हजारों  किलोमीटर की सरहद बना दी. फिल्म का ये सीन दर्शकों को सहज ही जोड़ता है. ब्रिटिश इंडिया टीम को 1936 के ओलंपिक में विजेता बनाने वाले सम्राट (कुनाल कपूर) की सपोर्टिव एंट्री होती है. जो तपन को फिर से नई टीम बनाने में उम्मीद बांधता है.

नई टीम बनती है तो कुछ समस्याएं भी उजागर होती है. चाहे वो फंड से जुड़ा हो या खेल के लिए मैदान से या फिर उनके लिए डॉक्टर और फिजियों की व्यवस्था को लेकर हो. सुविधाओं के अभाव का बदस्तूर दौर आज भी जारी है। फेडरेशन में राजनीति की वजह से खिलाड़ियों का खेल कम अफसरों का खेल ज्यादा दिखता है. हाल ही में ऑस्ट्रेलिया में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स 2018 के दौरान देखा गया कि भारतीय खिलाड़ियों को फिजियों की सेवाएं नहीं मिल पाई थी। 327 एथलीट के साथ महज दो डॉक्टर भेजे गए थे. गोल्ड फिल्म का इस तरफ संकेत अच्छा है. मैनेजमेंट की कुछ तो कमी रही होगी जो आजादी के बाद खेले गए पहले ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम को मैच नंगे पांव खेलना पड़ा था.

फिल्म कहीं पर रीयल बेस्ड स्टोरी लगती है तो कहीं फिक्शनल लगती है. डायरेक्टर रीमा ने खूब सारा फैक्ट्स डाला है. चाहे वो पहले विश्व युद्ध की बात करती हो या दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ओलंपिक को लेकर भारत के नजरीये की या फिर साल 1928 में ब्रिटेन की साजिश के चलते भारत को ओलंपिक से बाहर रखने की बात हो. फिल्म देखने पर मालूम चलता है कि नई पीढ़ी की टीम में हिम्मत सिंह और कुंवर रघुवीर सिंह के बीच सेंटर फॉरवर्ड खेलने की बजाय फैक्ट्स की टकराहट ज्यादा दिखती है. क्योंकि जब भी हम हॉकी का नाम लेते हैं तो जहन में सबसे पहले मेजर ध्यानचंद की तस्वीर आती है. ठीक उसी तरह जैसे सचिन का नाम लेते क्रिकेट की तस्वीर बनती है. पूरी फिल्म में हॉकी के महान खिलाड़ी ध्यानचंद का जिक्र नहीं है. अच्छा होता कि फिल्म के जरिए दर्शक हिटलर का भारत के खिलाफ दिए गए बयान को भी जान पाते. लेकिन वो भी नादारद है. कम से कम ऐसी उम्मीद बिल्कुल भी नहीं की जा सकती कि जहां आप (रीमा जी) हॉकी की दीवानगी से फिल्म की सजावट कर रही हो और वहां फैक्ट्स से समझौता कर उसकी चमक पर पर्दा डाल रही हो.




Thursday, 16 August 2018

न्यूक्लियर के निशाने पर दुनिया: क्या हॉलीवुड-बॉलीवुड के दो हीरो इस हमले से बचा पाएंगे?

जुलाई-अगस्त के दूसरे सप्ताह में जासूसी जॉनर की दो फिल्में आई. पहली मिशन इम्पोसिबल: फॉलआउट और दूसरी विश्वरूपम-2. दोनों फिल्मों में काफी कुछ कॉमन सा है. 



क्रिस्टोफर मैक्वॉरी की डायरेक्टेड मिशन इम्पोसिबल: फॉलआउट और कमल हसन की विश्वरूपम-2 अपनी-अपनी फिल्मों के सीक्वेल है. दोनों फिल्मों के पिछले सीक्वेल दर्शकों को खूब पसंद आए. उसी का नतीजा है कि स्क्रीन पर हम लीड रोल में उन्हीं एक्टर्स को दोबारा नए मिशन-नई कहानी के जरिए देख रहे हैं. कहानी क्या है? दुनिया भर में न्यूक्लियर हथियारों को लेकर पागलपन सा माहौल बना हुआ. कभी अमेरिका-नॉर्थ कोरिया तो कभी अमेरिका-ईरान. मिशन इम्पोसिबल: फॉलआउट  का हीरो ईथन (टोम क्रूज) वैश्विक आतंकवादी जॉन लार्क और उसके साथियों से उन तीन न्यूक्लियर बमों (प्लूटोनियम) को हासिल करना चाहता है. जिसके इस्तेमाल से दुनिया तहस-नहस हो सकती है. ईथन की आईएमएफ टीम सीआईए के एजेंट अगस्त वॉकर (हैनरी कैविल) और यूके की खुफिया एजेंसी एमआई-6 की एजेंट इल्सा फाउस्ट की मदद से प्लूटोनियम को हासिल करने के लिए मिशन में हैं. वही प्लूटोनियम जिसे वो बर्लिन में एक डील के वक्त मिस कर देता है. ईथन को देखकर जासूस बनने की हसरत पालने वाले एक स्मार्ट जासूस बन सकते हैं. फिल्म में ईथन को छोड़ दे तो एजेंट इल्सा और एजेंट अगस्त के एक्शन सींस अच्छे लगते हैं. इससे पहले अगस्त वॉकर को फिल्म बैटमैन वर्सेस सुपरमैन : डॉन ऑफ जस्टिस  में सुपरमैन की भूमिका में देख चुके हैं. कहानी में ट्वीस्ट तब और आता है जब अगस्त ईथन को डबल क्रॉस करते हुए  दुश्मन सोलोमन लेन से हाथ मिला लेता है. फिल्म में ईथन एजेंट अगस्त पर भारी पड़ते हैं. 56 की उम्र में भी सड़क से लेकर कॉरपोरेट ऑफिस की छतों पर उनकी दौड़-जंप के अलावा फाइट, बाइक पर स्टंट और हेलीकॉप्टर को उड़ाते देख लगता है कि जैसे-जैसे वो उम्र के पड़ाव पार करते जा रहे हैं  वैसे-वैसे एक्शन में उम्र की सीमा को तोड़ते जा रहे हैं. कठिन हालात में भी ईथन के चेहरे पर शिकन न आना बताता है कि वे ही असली सुपरस्टार है. खासियत है कि दो घंटे से भी ज्यादा वक्त की ये फिल्म आपको बोर नहीं करती. फिल्म अमेरिका के अलावा बेलफास्ट, बर्लिन और भारत के सियाचिन में शूट हुई है. भारत के विदेश मंत्रालय ने फिल्म में कश्मीर से जुड़ी सीमाओं को लेकर दिखाए गए फैक्ट्स पर आपत्ति भी जताई थी. इसके बाद रिलीज से पहले फिल्म के कुछ सींस काट दिए गए थे.

‘‘जंग में जाने जाएंगी, मौते होंगी और जख्म भी। जरा खून देखते ही आसू बहते हैं तो पर्दा पहन लो’’- अलकायदा जिहादी उमर कुरैशी (राहुल बोस) का ये डायलॉग अपने साथी विजाम अहमद कश्मीरी (कमल हसन) से हैं. फिल्म के शुरुआत में स्क्रीन पर कुछ लाइनें लिखी हुई आती है. ये लाइन दर्शकों को 2013 की विश्वरूपम  से जोड़ती है. ‘जिहादी उमर वही है जो साल 2011 में न्यूक्लियर हमले से न्यूयॉर्क को तबाह करना चाहता था.’ लेकिन रॉ एजेंट विजाम अहमद कश्मीरी की बदौलत नाकाम हो जाता है. उसके बाद उमर और सलीम के हिंदुस्तानी खुफिया एजेंसी की कैद से भाग जाने के साथ विश्वरूपम का पहला अध्याय खत्म होता और यहां से शुरू होता विश्वरूपम-2. फिल्म में दो से तीन बार फ्लैशबैक इन और आउट है जो कहानी की कड़ियों को जोड़ते हुए चलती है. लेकिन उससे भी ज्यादा जानना ये जरूरी है कि आखिर कब तक दुश्मनों की जासूसी के लिए प्लान के मुताबिक हम अपने जावानों का बहिष्कार कर उसे दुश्मनों की नजर में खुद का दुश्मन साबित करते रहेंगे. अार्मी ऑफीसर विजाम भी इसी सोच और सिस्टम का शिकार होता है. उसका कोर्ट मार्शल कर आर्मी से निकाल दिया जाता है. सारे रिकॉर्ड्स मिटा दिए जाते हैं. तभी वह उमर के संपर्क में आता है. ऐसा ही हम मेघना गुलजार की डारेक्टेड राजी  फिल्म में देखते हैं. पाकिस्तान की जासूसी के लिए दुश्मन के घर में सेहमत (आलिया भट्‌ट) को बहु बनाकर और फिल्म द: हीरो- ए लव स्टोरी  में रेशमा (प्रीति जिंटा) को नौकरानी के रूप में भेजते हैं. इसके अलावा फिल्म में न्यूयॉर्क में बम लगाने का सिलसिला शुरू होने के साथ ही लंदन और फिर दिल्ली तक आता है. रॉ एजेंट विजाम इन्हीं बमों को मुंह बोली पत्नी निरुपमा, एजेंट अस्मिता व कर्नल जगन्नाथ (शेखर कपूर) और यूके की गुप्त एजेंसी एमआई-6 के एजेंट की मदद से डिफ्यूज करता है. फिल्म में ओमार के जरिए जिहादी के जीवन को करीब से दिखाया गया है. उसके बेटे नाजीर और जलाल की ख्वाहिश है कि वे जिहादी नहीं बल्कि डॉक्टर और इंजीनियर बनना चाहते हैं. पर एक जिहादी यही चाहता है कि जिहादी का बेटा जिहादी ही बने. एजेंट विजाम की फाइट अच्छी है. लंबे वक्त के बाद हिंदी फिल्मों में ऐसी फाइट देखने को मिली है जिसमें कुछ ओरिजनल लगे. फिल्म में एक दूसरा पहलू भी है जिसे डायरेक्टर हसन ने दिखाया है कि किस तरह से कुछ पोलिटिशियन देशहित में चल रही खुफिया गतिविधियों को प्रभावित कर रहे हैं.  उमर के रोल में राहुल बोस को पर्दे पर लंबे समय याद रखा जा सकता है. कई सींस में वो प्रभावित भी नहीं कर पाते. डायलॉग्स में प्रोपर आवाज नहीं है. लेकिन फिल्म में जिहादी का खौफ पैदा करने का काम उन्होंने सफलतापूर्वक किया है. स्क्रीन पर शेखर कपूर को देखकर अच्छा लगता है.

Tuesday, 7 August 2018

हरियाणा चुनाव-2019 : चंडीगढ़ को हरियाणा का हक बना पाएगी इनेलो ?

चुनावी चिंता : विधानसभा में करीब सवा साल और लोकसभा में 7 माह का वक्त है। विपक्ष इनेलो मेनिफेस्टो के 5 वादें जनता के सामने ले आया है।

पढ़े-लिखे हाथ आज काम को तरसते हैं, खेत में खड़े किसान आज दाम को तरसते हैं, तरसती हैं आज बहने सुरक्षा के लिए, बुजुर्ग आज हमारे सम्मान को तरसते हैं’-  हिसार सांसद दुष्यंत चौटाला का ये संबोधन अपने युवाओं से था। निशाने पर थी प्रदेश में भाजपा और केंद्र सरकार। बड़ी ही चतुराई से इनेलो (इंडियन नेशनल लोकदल) के युवा नेता दुष्यंत ने देश की सभी समस्याओं को एक लाइन में पिरो कर उसकी माला विरोधियों के गले में पहना दी। उम्मीद की जा रही थी कि अपने लंबे संबोधन में दुष्यंत मॉब लिंचिंग, गुड़गांव में मुस्लिम युवक की जबरन दाढ़ी काटे जाने और सार्वजनिक जगहों पर नमाज अदा किए जाने जैसे मुद्दों पर भी बोलेंगे। पर सब कुछ सिफर रहा।

लौटते हैं कैथल पर। पंजाब से सटे हरियाणा के इस जिले से विपक्षी पार्टी इनेलो 5 जुलाई, 2018 को आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव के अपने मेनिफेस्टो से 5 वादें जानता के सामने ले आई है, तो हो-हल्ला भी मचना है। आखिर 90 सीटों में से 19 विधायकों वाली पार्टी इतनी जल्दी कथित मेनिफेस्टो कैसे जारी सकती है? क्या विपक्ष को एेसा आभास हो चुका है कि प्रदेश में 2019 के अक्टूबर की बजाय विधानसभा के चुनाव लोकसभा के साथ होंगे? वरना इनेलो अपनी स्टूडेंट इकाई (इनसो) के 16वें फाउंडेशन-डे प्रोग्राम के मंच से ऐसी घोषणा क्यों करेगी? वो भी तब जब उसके कई बड़े नेताओं की नाराजगी की खबरें मीडिया में आ चुकी हो। कैथल के अनाज मंडी में लगे बड़े से पंडाल में युवाओं की जबर्दस्त भीड़ देखने को मिली। युवाओं का एेसा क्रेज उन सभी बातों को झूठला रहा था कि हरियाणा के युवा राजनीतिक गतिविधियों में रुचि नहीं रखते। वे तो सिर्फ कुश्ती, कबड्‌डी और निशानेबाजी जैसे खेलों की तरफ भागते हैं या सेना और पुलिस में भर्ती होते हैं? पंडाल के बीचों-बीच युवाओं की भीड़ और उसके दोनों तरफ लगे लोहे के पाइप पर चढ़े युवाओं के हाथों में हरे झंडे और उड़ते ड्रोन कैमरे दिख रहे थे।

मंच पर आए हरियाणा विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता और ओमप्रकाश चौटाला के छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला ने सीबीआई और ईडी को भाजपा की एजेंसी बताई। इशारा था उनके पिता ओम प्रकाश चौटाला और बड़े भाई अजय चौटाला को शिक्षक भर्ती घोटाले में फंसाया गया है। उन्होंने कहा कि पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल की जयंती पर 25 सितंबर को हमने जनता से 5 वादें किए हैं। इसे वर्ष 1987 में चौधरी देवीलाल के प्रदेश की जनता से किए 3 वादें से जोड़कर अपनी बात रखी। उन्होंने अपने दादा देवीलाल की बातों को दोहराते हुए कहा कि अगर आपने मुझे प्रदेश की सत्ता सौंपी, अगर आपने मुझे प्रदेश की बागडोर सौंपी तो बुजुर्गों को मान और सम्मान दूंगा, किसानों के दस-दस हजार रुपए तक के कर्ज माफ कर दूंगा और गरीब की बेटी की शादी में कोई रूकावट न आए इसके लिए 5100 सौ रुपए कन्यादान के रूप में दूंगा। उस वक्त जब देवीलाल सत्ता में आए तो उन्होंने सबसे पहले यही 3 वायदे पूरे किए। अब इसी गुणा-भाग के जरिए अभय चौटाला सत्ता में वापसी चाहते है। वक्त के साथ इनेलो नेता अभय ने वादें में बिजली के दामों से राहत देने और सतलुज-यमुना लिंक नहर से ज्यादा पानी की मांग और बुजुर्गों के लिए 2500 पेंशन और कन्यादान के लिए 5 लाख की राशि में भी बढ़ोतरी कर दी है। उन्होंने राजीव लोंगोवाल समझौते का जिक्र करते हुए कहा कि इंदिरा सरकार ने हरियाणा के हितों की अनदेखी कर, उसे कमजोर करने की साजिश रची थी। हरियाणा की बलि दी थी। उस समझौते में जो चंडीगढ़ हमारा था। उन्होंंने शाह कमीशन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि जब फाजिल्का समेत उन 107 हिंदी भाषी गांवों पर फैसला हो, जब कभी भी चंडीगढ़ पर फैसला लिया जाए तो उस रिपोर्ट में लिखा था कि चंडीगढ़ पर अधिकार हरियाणा प्रदेश का रहेगा। यानी इनेलो के पास अच्छा-खासा मुद्दा है। देखना होगा कि चंडीगढ़ के नाम पर इनेलो वोटर्स की कितनी गोलबंदी कर पाती है?

हरियाणा का यूपी-बिहार कनेक्शन

कैथल के इनेलो मंच से युवाओं की बात हो रही थी। तो जाहिर है कि जेपी मूवमेंट की भी बात होगी। चीफ गेस्ट के तौर पर बिहार के पूर्व सीएम और  विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यावद और सपा नेता मुलायम सिंह यादव के भतीजे और बदायूं से सांसद धर्मेंद्र यावद मौजूद थे। दोनों नेताओं ने संघर्ष की बात कही। तेजस्वी तो यहां तक कह गए कि ये खट्टर सरकार नहीं कट्‌टर सरकार है। इन्हें दंगे फसाद से समय नहीं मिलता। बयानबाजी बता रही थी कि हरियाणा में थर्ड फ्रंट की सुगबुगाहट चल रही है। ये कोई पहली बार नहीं है जब यूपी और बिहार का हरियाणा के नेताओं के साथ संघर्ष की बात हो रही हो। हरियाणा प्रदेश के गठन में अहम भूमिका निभाने वाले चौधरी देवीलाल जब वीपी सिंह की सरकार में उप प्रधानमंत्री बने तो उनके साथ लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव ही थे। परिणाम ये रहा कि चौधरी देवीलाल ने दोनों नेताओं को अपने-अपने प्रदेश में जातिगत पिछड़े वर्ग के नेता की पहचान दिलाई। चाहे वो मंडल कमीशन को लागू करवाने में अप्रत्यक्ष भूमिका रही हो या यूपी के 1989 विधानसभा चुनाव में चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह को समर्थन न देकर मुलायम सिंह यादव को दिया। तब मुलायम यूपी के पहली बार सीएम बने थे। 

हरियाणा में भाजपा को कोई गठबंधन नहीं

सांसद दुष्यंत जब ओम प्रकाश चौटाला को जेल से उठाकर चंडीगढ़ की सीट पर बिठाने के नारे लगा रहे थे उसी दिन सीएम मनोहर लाल खट्‌टर उनके संसदीय क्षेत्र में किसान धन्यवाद रैली कर रहे थे। सीएम खट्‌टर यहां ट्रैक्टर चलाकर पहुंचे। बरवाला विधानसभा क्षेत्र में स्टेडियम और सामुदायिक केंद्र के लिए उन्होंने 110 करोड़ की घोषणा की। उन्होंने प्रदेश में भ्रष्टाचार के लिए कांग्रेस और इनेलो को जिम्मेदार ठहराया। सीएम खट्‌टर प्रदेशभर में पौने चार साल की उपलब्धियों को लेकर जनता के बीच जा रहे हैं, रोड शो कर रहे और राहगीरी का हिस्सा बन रहे हैं। पानीपत से शुरू हुआ, देशभर में पॉपुलर हुआ बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान से हरियाणा में लिंगानुपात की स्थिति सुधारी है। इसे हरियाणा सरकार अपनी उपलब्धि मानती है। लेकिन जाट आरक्षण आंदोलन, किसान आंदोलन, राम रहीम प्रकरण में जान-माल के नुकसान से लॉ एंड ऑर्डर के दामन पर सरकार की नाकामी का दाग माना जा रहा है। अगर इन मुद्दों से सरकार पार पा भी लेती है तो भी क्या उसे अपने मंत्रियों के उन बड़बोले पन से कामयाब मिल पाएगी। जिसने न सिर्फ मीडिया में सूर्खियां बटोरी बल्कि सरकार की किरकिरी भी करवाई। राज्य सरकार की कैबिनेट में कृषि मंत्री रहे ओम प्रकाश धनकड़ ने एक कार्यक्रम में कहा था कि गांव को साफ करो तो बीवी मिलेगी। गुजरात चुनाव-2018 के दौरान स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने विवादित ट्वीट किया था- 100 कुत्ते मिलकर भी एक शेर का शिकार नहीं कर सकते। जबकि शिक्षा मंत्री रहते हुए रामविलास शर्मा ने रामरहीम के मामले पर बयान दिया कि उनके समर्थकों की श्रद्धा पर धारा 144 नहीं लगाई जा सकती। प्रदेश में भाजपा के हालात जो भी हो, पर सीएम खट्टर कह चुके हैं कि वे चुनाव में किसी से गठबंधन नहीं करेंगे।

अब देखना ये होगा कि भाजपा और इनेलो के बाद प्रदेश में कांग्रेस का क्या स्टैंड रहेगा। प्रदेश की वर्तमान सरकार ने पिछली सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के 4 मामलों की जांच शुरू करवा दी है। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा पर ये भी आरोप है कि उनके कार्यकाल में रॉबर्ट वाड्रा को गुड़गांव में सस्ती जमीन के सीएलयू, राजीव गांधी ट्रस्ट को गुड़गांव में और नेशनल हेराल्ड के ट्रस्ट एजीएल को पंचकूला में सस्ती जमीन देकर सरकार को नुकसान पहुंचाने के मामलों की जांच आगे नहीं बढ़ पाई थी।

अनवर का अजब किस्सा : ड्रिमी वर्ल्ड का वो हीरो जो मोहब्बत में जिंदगी की हकीकत से रूबरू हुआ

बड़ी ही डिस्टर्बिंग स्टोरी है...एक चर्चा में यही जवाब मिला. डायरेक्टर बुद्धदेव दासगुप्ता की नई फिल्म आई है. अनवर का अजब किस्सा. कहानी-किस्स...