Sunday, 31 December 2017

प्रेमियों को प्रिय लगेगी - ‘आषाढ़ का एक दिन’

योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष पूर्ति प्रतिष्ठा द्वारा होती है। कालिदास को राजधानी अवश्य जाना चाहिए। (निक्षेप, मल्लिका से )


जब एक लेखक बीते वक्त के लेखक पर लिखता है। जिक्र में उसके  प्वाइंट ऑफ टर्निंग लाइफ की बात करता है तो किस्सा बड़ा दिलचस्प बन जाता है। यहां वो किस्सा-कहानी मोहन राकेश ‘आषाढ़ का एक दिन’ के जरिए लाए है। महज एक सीटिंग में पढ़ी जाने वाली ये किताब  कालीदास और उनकी प्रेमिका मल्लिका के संबंधों पर हैं। प्रेमी जोड़ों के रिलेशन पर समाज किस ओट में करवट लेता है। इसे इस वाक्या से समझा जा सकता है-  तुम्हारे साथ उसका संबंध है कि तुम एक उपादान (फैक्टर)  हो जिसके आश्रय से वह अपने से प्रेम कर सकता है, अपने पर गर्व कर सकता है (मां अंबिका का अपनी बेटी मल्लिका से)। लेखक यह बताने में सफल रहा है कि समाज घर से बाहर गली-मोहल्ले में ही नहीं बसता और ना ही उसकी पहचान संख्या आधारित होती है।


कहानी की शुरुआत हिमालय के सुहावने मौसम से होती है, जहां चारो तरफ हरे-भरे पेड़, सामने पर्वत उसके ऊपर छाए बादलों से गिरती बारिश की बूंदे। घर से बाहर जवान बेटी मल्लिका के लिए मां अंबिका आंगन के एक छोर से उसके लौटने की टोह में है। लेखक ने कहानी के किरदारों के बीच वन-टू-वन संवादों से संबंधों की संवेदनाएं व्यक्त की है। जैसे कि मां का अपनी बेटी के लिए एेसे लड़के की चाहत जो उसकी सुखी जीवन के लिए समृद्ध हो। मल्लिका प्रेमी कालीदास के पक्ष में मां के सामने विलोम की भाषा का इस्तेमाल करते हुए उसके साधनहीन और अभावग्रस्त जीवन की तरफ इशारा करती है। इसके अलावा कहानी में मातुल और विलोम पारंपरिक रोल को अदा करते हैं। कालीदास का उज्जियनी की राजकुमारी से विवाह कर लिए जाने पर पर निक्षेप को मल्लिका का हमदर्द बनते देखा जा सकता है।


व्यक्ति उन्नति करता है तो उसके नाम के साथ कई तरह के अपवाद जुड़ने लगते हैं। (मल्लिका, निक्षेप से)


‘आषाढ़ का एक दिन’ पढ़ लिए जाने पर एक हिचक दूर हो जाती है। कुम्हारसंभव की तपस्विनी उमा, मेघदूतम में यक्षिनी और अभिज्ञान शकुंतलम् में शकुंतला की कल्पना बगैर मल्लिका के नहीं की जा सकती है। ऋतुसंहार रचना पर सम्मान के लिए कालीदास को विदा करते हुए मल्लिका कहती है कि-जब भी तुम्हारे निकट होना चाहूंगी, पर्वत शिखर पर चली जाऊंगी और उड़कर आते मेघों में घिर जाया करूंगी।  यूं तो इश्क निजी होता है लेकिन ये कालीदास ही थे जिन्होंने अलग-अलग रचनाओं में अपनी प्रेमिका मल्लिका को रूपरेखा दी। आमतौर पर जब-जब भी प्रेम की बात होती है तो सेक्सुअल रिलेशन को केंद्र बनाकर किरदारों की जीवन परिक्रमा दिखाई जाती है। एेसा आचार्य चतुर्सन शास्त्री के उपन्यास वैशाली की नगरवधू, डॉ. धर्मवीर भारती के गुनाहो का देवता, शरतचंद की चरित्रहीन और सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" के उपन्यास नदी के द्वीप में बड़ी आसानी से देखा जा सकता है। लेकिन लेखक मोहन ने कालीदास और मल्लिका के रिलेशन में जो ऊंचाई, गहराई, तीव्रता और पवित्रता दिखाते वो पाठक को दीवाना बना देती है।

क्यों पढ़ी जाए ‘आषाढ़ का एक दिन’ 

हर दौर में लोगों के दिलों पर प्रेम का राज है। प्यार के नाम पर पूरा सप्ताह वेलेंटाइन वीक मना रहे हैं। रोज़-डे, चॉकलेट-डे व हग-डे के बीच प्रेम के नाम पर कामुक व वासना से हट कर ‘आषाढ़ का एक दिन’ को भी समझने की जरूरत है, जहां एक प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए वो बनकर लौट आने की चाह रखता है जो उसे अच्छा लगे, उसका बनकर रहे, नाकामियों को मिटा उसके
हालात और औकात में आ जाए। 

No comments:

Post a Comment

…और कितनी मासूम लोगों की जानें लेगी भगदड़?

आंध्र प्रदेश के वेंकटेश्वर मंदिर में एकादशी पर जुटी भीड़ के बीच भगदड़ मचने से कम से कम 9 लोगों की मौत हो गई। शासन-प्रशासन रेस्क्यू और घायल ल...