दो बच्चे हैं मीठी खीर, उससे ज्यादा बवासीर. नारा पढ़कर 3 बच्चों का पिता खफा हो जाता है. बोल पड़ता है- ‘दो से ज्यादा बच्चा बवासीर होता है, हमारा पिंटू बवासीर है?’ ये बात पूरे गांव में आग की तरफ फैल जाती है. ऐसे लोगों की बढ़ती तादाद यानी संभावित वोट कटने से चिंतित प्रधान-पति बृज भूषण दुबे (रघुवीर यादव) बचाव के एक्शन में आ जाता है. ये सीन ‘पंचायत’ वेब सीरीज के चौथे एपिसोड का है. एमेजॉन प्राइम की इस नई वेब सीरीज को दीपक कुमार मिश्रा ने डायरेक्ट किया है. 8 एपिसोड वाली ये कहानी फुलेरा पंचायत की है. जो यूपी-बिहार के बॉर्डर से सटे बलिया जिले का हिस्सा है. कायदे से यहां प्रधान, उप प्रधान और सहायक है. कहानी की शुरूआत खाली सचिव पद पर अभिषेक त्रिपाठी (जितेंद्र कुमार) की एंट्री से होती.
सरकारी तंत्र और ग्रामीणों के बीच फासले को कम करने के लिए देश में पंचायतें बनी है. यहां अभिषेक उसी सिस्टम का हिस्सा है. जो शहर से निकल गांव में सचिव बनकर आया है. साथ में बोरिया-बिस्तर बाइक पर बांध लाया है. ये सीन उस हर नौकरी करने वाले सामान्य युवा से जोड़ता है. कॉरपोरेट दफ्तर में काम करने वाले दोस्त की सलाह पर अभिषेक पंचायत में सचिव की नौकरी करने आ जाता है. लेकिन सब कुछ बेमन से. इसलिए भी जब उसके मुताबिक काम नहीं होते या पॉजिटिव रिजल्ट नहीं आने पर वह गुस्सा सा जाता है. फिर चाहे वो गांव में आई बारात के दुल्हे द्वारा उसकी आरामदायक और चक्के वाली कुर्सी की मांग कर डालना हो, दूसरे गांव के लड़कों के उकसाने पर पीटने के लिए बैट उठा लेना हो या पहली दफा में कैट क्वालिफाई न कर पाना हो. इन सबके बीच उसे सहयोगी विकास (चंदन रॉय) की सहानुभूति मिलती है. पर ये तय कर पाना मुश्किल होता है कि वह प्रधान गुट का है या सचिव गुट का. कहानी में प्रधान पति की भूमिका में रघुवीर यादव है. जो विधायकी लड़ चुका है. प्रधान की सीट महिला आरक्षित होने के चलते पत्नी मंजू देवी (नीना गुप्ता) को चुनाव जीतवा चुका है. पर सत्ता पर खुद काबिज है. लोगों की नजर में असली प्रधान भी है. उसका अधिकारियों को लौकी भेंट करना हमारी नजरों का इम्तिहान लेती है.
मनरेगा, भ्रष्टाचार, फैलाए गए झूठ और दहेज प्रथा जैसे बिंदुओं को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष छूते हुए ये कहानी हमें हंसाती है, गुदगुदाती है और कभी-कभी गंभीरता के चादर से जकड़ देती है. सामानंतर राजनीति में प्रधान पति का ये कल्चर सिर्फ पंचायत तक सीमित नहीं रहा है. बल्कि विधायक, सांसद और मंत्री के पति सड़कों से लेकर सार्वजनिक समारोह तक में एक सामान्य नागरिक की जगह वे विशेषाधिकार की हैसियत से पेश आते हैं. लोकतंत्र जैसे देश में ‘पंचायत’ के सियासत की तस्वीर को खूबसूरती से दिखाया है. कहानी के फुलेरा दफ्तर में रखी फाइलों पर जमी धूल हो या सांसद योजना के तहत मिलने वाली 13 सोलर लाइटों की बंदरबाट. ये सभी पंचायत मोहर की ताकत को धूमिल करती है. महात्मा गांधी ने कहा था- ‘यदि गांव नष्ट होते हैं तो भारत नष्ट हो जाएगा.' कोविड-19 जैसी महामारी में भी ग्राम प्रधानों की लापरवाही किसी से छिपी नहीं. एक गांव में 32 लोगों को क्वॉरेंटाइन किया गया. जांच में पता चला तो बेड पर महज 3 लोग ही मिले. पूछने पर प्रधान का बेपरवाह जवाब था- ‘अरे सब घर गए होंगे, खा-पीकर सोने के लिए आ जाएंगे.’ ये वेब सीरीज पंचायत की सियासत में बने रहने के लिए अपनाए जाने वाले सभी हथकंडे और मनमानी जैसे रवैये दर्शाती है.
जिस धारणा के घोड़े पर सवार होकर ‘पंचायत’ को देख रहे होते वह एक वक्त के बाद धड़ाम से गिर जाता है. कहानी नई और सहज है. धीमी आवाज में सही लेकिन गंभीर प्रहार करने वाली पंचायत के अगले सीजन का बेसब्री से इंतजार रहेगा. अभिषेक और रिंकी की लव स्टोरी, अभिषेक की पृष्ठभूमि और प्रधान मंजू देवी की आत्मविश्वास से भरी प्रधानी भूमिका और डीएम की फटकार से क्षुब्ध प्रधान-पति बृज भूषण का पलटवार. सब अगली कड़ी में मिलेंगे.
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