‘हम आपको हायर नहीं कर रहे, बल्कि आप हमारे साथ जुड रहे हैं. आप हमारे लिए काम ना करके हमारे साथ काम करेंगे. यहां जॉब का कोई कॉन्ट्रेक्ट नहीं है और ना ही आपके के लिए कोई टार्गेट है. आप डिलीवरी के मानकों को पूरा करते हैं. इसलिए मेहनताना की जगह आपको आपकी फीस दी जाएगी. यहां काम के घंटे तय नहीं है. आप सिर्फ हमारे लिए उपलब्ध रहेंगे. आप अपनी नियती के मालिक है. आखिरी बात. आप अपनी वैन लाएंगे, तभी हम आपको अपने लिए हायर कर सकेंगे?’
कैन लॉच की निर्देशित सॉरी वी मिस्ड यू फिल्म के शुरुआत में उपरोक्त बातेें इंटरव्यू का हिस्सा है. ब्लैक स्क्रीन के भीतर से उभरती आवाजें रिकी टर्नर और सुपरवाइजर मेलोनी की है. धीरे-धीरे नॉर्मल होती स्क्रीन के बीच सुपरवाइजर दस्तावेजों को पलटता है. इधर सुपरवाइजर की आखिरी शर्त से रिकी एक पल के लिए सोच में पड़ जाता है. फिर वो ईएमआई पर वैन लेने के लिए तैयार हो जाता है. रिकी ना ज्यादा पढ़ा-लिखा और ना ही उसके पास कोई प्रोफेशनल डिग्री है. दरअसल रिकी जिस सेक्टर से जुड़ रहा है वो गिग इकोनॉमी का हिस्सा है. यानी जौमेटो, अमेजन, फ्लिपकार्ट और स्विगी जैसी कंपनियों में डिलीवरी एग्जीक्यूटिव का जॉब है. यहां ना उम्र देखा जाता है और ना ही किसी तरह की खास क्वालिफिकेशन. अगर कुछ समझा जाता है तो वह एग्जीक्यूटिव के पास खुद की व्हीकल और टाइम पर डिलीवरी का जोश. रिकी यहां होने वाली कमाई को लेकर उत्साहित है. क्योंकि उसने पिछली जॉब मंदी के चलते गवाई थी. उसी मंदी ने हाउसिंग सेक्टर को तहस-नहस कर दिया था. रिकी न्यूकैसल शहर में किराये के मकान पर पत्नी ऐबी, बेटी लाईजा (11) और टीनेजर बेटा सेबस्टियन के साथ रहता है. रिकी जैसे ही बिजनैस की बात परिवार को बताता है तो सभी की आंखें खुशी से चमक उठती है. बेटा पिता के गले से झूम जाता है. रिकी कहता है- ‘इन 2 सालों में हमारे पास खूब पैसा होगा, हम खुद की जमीन ले लेंगे.’ काम के साथ वैन की अनिवार्यता की बात भी जोड़ता है. पत्नी से कहता है कि वो अपनी कार बेच दें. ताकि उन पैसों से वैन की डाउन पैमेंट कर सके. बिना कार के अपने काम पर होने वाले असर को लेकर ऐबी एतराज जताती है. लेकिन रिकी उसे बस से जाने का सुझाव देता है. यहां जो दृश्य खुशी का है वही गम का भी है.
फिल्म गले तक कर्ज में डूबे टर्नर परिवार के संघर्ष की है. जीरो-ऑवर्स-कॉन्ट्रेक्ट में नर्स के तौर पर मरीजों के घर पर केयर-टेकर का काम करने वाली ऐबी क्लाइंट मॉली से ये कहते हुए सुनी जाती है कि- ‘10 साल पहले यानी वर्ष 2008 में नॉदर्न रॉक बैंक डूबा था. उस मंदी के चलते बंधक ऋण पर लिया मकान गवाना पड़ा था.’ हजारों यूरो के कर्ज को चुकाने के लिए रिकी-ऐबी खूब मेहनत करते हैं. ज्यादा पैसों के लिए रिकी 2 रुटों पर पार्सल डिलीवरी करता है. पार्सल की टाइम पर डिलीवरी का प्रैशर इतना कि वह पैशाब भी वैन में रखी बोतल में करता है. इधर ऐबी भी अलग-अलग क्लाइंट के पास पूरी शिफ्ट में 14 घंटे की ड्यूटी करती है. क्लाइंट की नाराजगी पर भी वह अच्छे से पेश आती है. लेकिन बच्चों को वक्त नहीं दे पाने से कुछ चीजे बिगड़ती चली जाती है. खासकर बेटे सेबस्टियन के लिए. वो स्कूल जाना छोड़ देता है. सड़कों पर प्रचार की पेंटिंग करता है. यहां तक कि एक वक्त के बाद वह पिता के काम को नापसंद करता है. जो पिता और बेटे के बीच मुश्किल रिलेशनशिप को दर्शाता है. बीते सालों में आर्थिक मंदी पर भले ही खूब किताबें लिखी गई होंगी. सरकारों ने नाकामियों को छिपाया होगा या उससे जनता का ध्यान भटकाया होगा. विपक्ष ने सरकार की गलत नीतियों का नतीजा बताया होगा. जागरूक समाज ने मंदी से बंद कंपनियों, खत्म हुई नौकरियों व फलां कंपनी के उत्पादन में गिरावट जैसी तमाम बिंदुओं पर महज औपचारिक चर्चा कर छोड़ दिया होगा. लेकिन डायरेक्टर कैन यहां ऐसी हीं मंदी से प्रभावित परिवार की कहानी को परदे पर उतारते हैं. एकदम नेच्यूरल सब्जेक्ट में. यही वजह कि वर्किंग क्लास खुद को इस कहानी के करीब पाता है.
कर्ज किसी के लिए आपदा हो सकती है तो किसी के लिए बुरा साया. तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच फिल्म में रोज की जिंदगी में कुछ धैर्य बंधाता है तो वो है रिकी और ऐबी के संबंध. जो इमोशन से भरपूर है. एक एक-दूसरे को लेकर किसी तरह से शंकित नहीं है. जैसे कि ऐसे रिश्ते किसी खास वर्ग में बनते हो. इन दोनों की जोड़ी ‘द स्काई इज पिंक’ फिल्म में मूज और पैंडा की याद दिलाती है. फिल्म के एक सीन में रिकी से मारपीट कर कुछ लुटेरे पार्सल लूट लेते हैं. इलाज के लिए ऐबी के साथ हॉस्पिटल आए रिकी को कंपनी से फोन आता है. लूटे गए उन पार्सल व स्कैनर डिवाइस पर जवाब मांगे जाते हैं. ये देख ऐबी फोन ले लेती है और समझाती जाती है. लेकिन कंपनी के कायदे-कानून से परिवार में बिगड़े हालात की सारी कड़वाहट को सुना डालती है. एक पल के लिए ये सीन आत्म-विमर्श करने पर मजबूर कर देता है.यहां ये फिल्म कर्ज के कल्चर से लेकर कॉरपोरेट सेक्टर के कॉन्ट्रेक्ट से बंधी जिंदगी को देखने का नजरियां दे जाती है.
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