लेखक - औरत अपने प्रति आने वाले प्यार और आकर्षण को समझने में भूल कर सकती है। लेकिन अपने प्रति आने वाले उपेक्षा व उदासी को पहचाने में भूल नहीं करती.
तुम्हारी शारीरिक प्यास जागी या नहीं पर मेरे मन के गुनाह तो तूफान की तरह लहरा उठे, चंदर का ये वक्तव्य सुधा से हैं। शादी के बाद अपने पिता के घर लौटी सुधा दोस्त चंदर से मिलती है। जवानी का ज्यादा वक्त दोनों एक छत के नीचे बीता चुके हैं। हर पिता की तरह डॉ. शुक्ला भी बी.ए फाइनल कर रही सुधा का रिश्ता तय कर आते हैं। और शादी के लिए सुधा को मनाने का काम चंदर को दिया जाता है। गुनाहों का देवता यहीं उपजा।
कल्पना, त्याग और पवित्रता कितने दिन टिकी? (चंदर, बिनती से)

चंदर, मैं तुम्हारी आत्मा थी, तुम मेरे शरीर थे। पता नहीं कैसे हम लोग अलग हो गये। तुम्हारे बिना मैं केवल सूक्ष्म आत्मा रह गई। पति को शरीर देकर भी मैं संतोष नही दे पाई और मेरे बिना तुम केवल शरीर रह गये। (सुधा, चंदर से)
लेखक प्रेम के जिस पड़ाव के अनुभवों को लिख रहा है वह उसका युवा मन है। इसलिए पढ़ने वाले आसानी से ये समझ सकते है कि जो अब इस पड़ाव का सामना करने वाले हैं या इस पड़ाव से आगे निकल चुके उनके अनुभवों को उपन्यास शब्द दे जाता है। लेखक ने शरतचंद की देवदास में जिस तरह से देवदास के पास पारो के बाद चंद्रमुखी आती है। वैसे ही सुधा की शादी के बाद चंदर के जीवन में पम्मी की एंट्री होती है। जो अपने संबंध से चंदर के अकेलेपन को एक वक्त के लिए भर देती हैं। मुख्य किरदार के साथ साइड में बर्टी, गेसू, डॉ. बिसारिया याद रह जाने वाले किरदार है जबकि सुधा की कजन बिनती की कहानी में मियाद आखिर तक है। इनमें से पाठक अपने व्यक्तित्व का किरदार आसानी से ढूंढ लेता है। जो किरदार पर सवार होकर इनके रिश्तों की गहराई में चलता जाता है। सवालों के जवाब खोजते ये किरदार, उनकी बातचीत मानों तर्क और यथार्थ से जिंदगी में रिश्तों पर जमें भ्रम की परत को तोड़ती चली जाती है।
समानता
गुनाहों के देवता में एक वक्त के बाद चंदर, सुधा व बिनती के बीच त्रिकोणीय पत्र संवाद है जो सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ के उपन्यास ‘नदी के द्वीप’ के भुवन, रेखा, गौरा और माधवचंद्र के बीच क्वाड्रैंगगल पत्र व्यवहार की याद दिलाता हैं। डॉ. धर्मवीर का ये उपन्यास मनोवैज्ञानिक है।
क्यों पढ़ी जाए ये नॉवेल?
प्यार में पड़े जोड़ों के बीच एक भ्रम की महीन सी दीवार होती है। जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। महज हां और न आकर रिश्तें नहीं खत्म करना चाहिए। लेखक ने किरदारों के बीच जो ईमानदारी दिखाई है। वही एक को उपासक और एक को देवता बना देता है। मसलन लेखक द्वारा चंदर के लिए लिखी गई लाइन- जब आदमी अपने हाथ से आंसू मोल लेता है, अपने आप दर्द का सौदा करता है, तब दर्द और आंसू तकलीफ देह नहीं लगते। और जब कोई ऐसा हो जो आपके दर्द के आधार पर आपको देवता बनाने के लिए तैयार हो और आपके एक-एक आसू पर सौ-सौ आसू बिखेर दे, तब तकलीफ भी भली मालूम देने लगती है। इसके अलावा किताब विवाह संस्था और जात-पात की तरफ इशारा करती है।
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