Saturday, 23 December 2017

प्यार में वफादरी वाला लड़का लाए हैं ज्यूसेपे टोर्नाटोर

उसकी बुनियाद क्या? जब प्यार में ताउम्र अविवाहित रहने की सोच जन्म लेती है



जब प्यार के सच्चे और झूठे दावों पर एहसास लिए जा रहे हैं। डायरेक्टर ज्यूसेपे टोर्नाटोर अपनी फिल्म सिनेमा-पैराडिसो में प्रेम में वफादारी दिखा रहे हैं। 40 के दशक के बैकड्रॉप पर बनी इस इटेलियन फिल्म का सेल्वाटोर डी-विटा उर्फ टोटो किस तरह कपल्स के लिए वफादारी का आदर्श बन जाता है? यही दिलचस्पी कहानी का सार बन जाती है। करीब तीन घंटे की इस फिल्म का 85 प्रतिशत हिस्सा फ्लेशबैक में हैं बाकी कहानी उस उम्र की है जहां मुख्य किरदार टीनेज बेटा-बेटी का पिता हो।

फिल्म में विविधता है। लेकिन तराजू पर लव का भार कुछ ज्यादा भारी हो पड़ जाता है।  डायरेक्टर टोर्नाटोर ने कहानी में पांच साल से 50 साल के टोटो को दिखाया है। जो रोम में अकेले रहता है लेकिन बीते पलों की यादें होमटाउन सिसिली की है। उसका बचपना दर्शक की यादों को ताजा कर जाती है। युद्ध के लिए रूस गए सैनिक पिता के लिए उदास मां को देख टोटो भी मायूस हो जाता है। पर अगले पल में फिल्म का पोस्टर देखते चेहरा की खुशी में उदासी गायब हो जाती है। अपने टेलेंट के दम पर अल्फ्रेडो की दोस्ती पाता। जो  थियेटर का एकमात्र प्रोजेक्टर का ऑपरेटर है। संबंधों के आधार पर टोटो प्रोजेक्टर चलाना सीख जाता है।यह कहना भी गलत नहीं होगा कि अपने पिता की गैर मौजूदगी और मां की ममता की उपेक्षा में अल्फ्रेडो को पिता और थियेटर में प्रोजेक्टर ऑपरेट करने के काम को टोटो मां बना लेता है।  फिल्म में टर्निंग प्वाइंट आगजनी की घटना बनती है। जिसमें अल्फ्रेडो अपनी आंखें की रोशनी खो बैठता है। फिर प्रोजेक्टर की सारी जिम्मेदारी टोटो पर आ जाती है। तब इसी शहर में एलेना की एंट्री। जिसे देख टोटो पहली नजर में दिल दे बैठता है। वो सब होता है जो प्यार को पाने के लिए पागलपन से दीवानेपन की हद तक जाने के लिए किया जा सकता है।
 

तीन घंटे की फिल्म में अगर कहीं उब नहीं आती तो उसके पीछे सिसिली शहर की खूबसूरती। समुंद्र, पुरानी इमारतें। उस शहर के सिनेमा प्रेमी। जिनमें शो देखने के लिए उन्माद है। अल्फ्रेडो का टोटो से संवाद, जहां वह कहता है कि जीवन फिल्मों की तरह नहीं है। जीवन बेहद मुश्किल है। वहीं मां का अपने टोटो के लिए सलाह- वफादारी बहुत कठोर होती है। यदि तुम वफादारी निभाते हो तो हमेशा के लिए अकेले हो जाते हो।  एलेना अपनी जिद से पिता को हरा देती है तो टोटो अपनी जिद से उस सामान्य से जीवन की नियती की दिशा को बदल देता है।

मौजूदा हालात में सिनेमा-पैराडिसो देखने लायक है। वो भी तब जब इटली और सिनेमा को लेकर जो राजनीतिक मंच से नफरत की धारण तैयार की जा रही हो। डायरेक्टर टोर्नाटोर ने सिसिली आइसलैंड की जो जीवन शैली परदे पर दिखाई है वह ये एहसास भी नहीं दिलाती कि भारतीय जीवन से कितनी अलग है। जैसा की पानी के लिए महिलाओं का घर से बाहर निकल कर नल तक आना। एक व्यापारी द्वारा अपने माल की बिक्री के लिए लूट की तरह ऑफर देना। एक सीन में दूध लाने के लिए मिले पैसों से पांच साल का तोतो थियेटर में फिल्म देख आता है। सिनेमा को लेकर जो उसकी चाहत है वह उससे जिंदगी भर के लिए वफादारी का पाठ सीख आता है।



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