लोचे को समझिए आखिर क्यों सीएम वसुंधरा राजे ‘मुख्यमंत्री आपके द्वार’ की जगह ई-गवर्नेंस को तवज्जो दे रही हैं?
भव्य सा मंच, विशाल सा डोम, अंग्रेजी भाषा के भारी-भरकम बोल से लेकर हिंदी के हल्के-फुल्के लहजे के साथ-साथ डिजिटल से वाकिफ आईटी के हैकर्स, देशभर के कोडर, युवाओं की फौज, सियासत के मंझे कलाकार। ये स्क्रिप्ट है बीकानेर के डिजिफेस्ट के आखिरी दिन की। राजस्थान का 5वां डिजिटल मेला, जहां हर उम्र का व्यक्ति पहुंचा। स्कूली बच्चों से लेकर कॉलेज-कंपनिज के यूथ। देखने को रोबोट्स थे, स्मार्ट विलेज, स्मार्ट सिटी और डिजिटल एंटरटेनमेंट के उपकरण। डोम में एंट्री करते ही एक नई दुनिया का आभास हो रहा था। सब कुछ गुड सा फील करवा रहा था। तय था 27 जुलाई को मेले के तीसरे दिन सरकार यानी सीएम वसुंधरा राजे का आना। उनके संबोधन का फेसबुक वीडियो लाइव होना। सब कुछ इतना अभिभूत कर रहा था कि चिमनाराम मेघवाल बारबाता नाम के एक यूजर ने यहां तक कि लिख डाला की-प्रोग्राम बीकानेर में चल रहा है या लंदन में??
सीएम वसुंधरा ने परिस्थितियों को भांपते हुए बोलना शुरू किया। अपने संबोधन में कहा- राजस्थान विल एक्वायर नंबर वन पोजिशन इन आईटी इन दा कंट्री... ये वाक्या उन्होंने दो घंटे के प्रोग्राम में दो से तीन बार दोहराया। जब सीएम राजे ने मंच से एक के बाद एक योजनाओं को बड़ी सी स्क्रीन पर लॉन्च करना शुरू किया तो कुछ वक्त के लिए राजस्थान डिजिस्थान में तब्दील हो गया। ये इशारा था कि सरकार आपको ई-गवर्नेंस मुहैया करवाएगी। यानी सरकारी सिस्टम आपके मोबाइल फोन, लेपटॉप और कंप्यूटर की पहुंच में होंगे। हर योजना की सुलभ पहुंच, समय-पैसे की बचत। पूरे सिस्टम में ट्रांसपेरेंसी और वर्ल्ड से कनेक्टिविटी। हर कोई मदहोश था डोम में चल रहे उस बैकग्राउंड के म्यूजिक में और भाषण पर आने वाली तालियों की आवाज में। महज दस दिन के भीतर माथे से उन चिंताओं की लकीरें भी मिट गई जो पूरे राज्य में दो दिन तक इंटरनेट शटडाउन से बनी थी। राजस्थान के इतिहास में ये भी पहली बार था जब किसी भर्ती परीक्षा में नकल को रोकने के लिए इंटरनेट की सेवाएं बंद कर दी गई। किसी ने इसे साइबर इमरजेंसी करार दिया तो किसी ने डिजिटल कर्फ्यू । तब सरकार भी इस असमंजस में पड़ गई कि सफल परीक्षा के लिए अपनी पीठ थपथपाएं या फिर जनता के अधिकारों को पाबंद करने के साथ-साथ रेलवे, बैंक, कैब व रोडवेज में ऑनलाइन बुकिंग नहीं हो पाने से करोड़ों के नुकसान पर अपने हाथ मसले।
ऐसा पहली बार नहीं था जब राजस्थान में इंटरनेट शटडाउन रहा। कांस्टेबल भर्ती परीक्षा से पहले सरकार ने पद्मावत (पहले पद्मावती) फिल्म, जयपुर के रामगंज में हुए उपद्रव और गैंगस्टर आनंदपाल एनकाउंटर से उपजे तनाव के वक्त भी इंटरनेट सेवाएं बंद थी। अप्रैल, 2017 में टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर नाम की एनजीओ ने जम्मू एवं कश्मीर, गुजरात, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मेघालय, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर के मुख्यमंत्रियों को इंटरनेट शटडाउन के संबंध में पत्र लिखे थे। 2012 से अप्रैल, 2017 तक जम्मू एवं कश्मीर में इंटरनेट शटडाउन के 28 मामले, गुजरात में 9, हरियाणा में 8 और राजस्थान में तीन। राज्य सरकारें धारा 144 के तहत कानूनन इंटरनेट शटडाउन कर सकती है। केंद्र सरकार भी आईटी एक्ट 69 के तहत इसकी पालना के लिए बाध्य है। पर ये बात हजम नहीं होती कि महज परीक्षा में नकल रोकने के लिए सरकार दो दिन तक इंटरनेट सेवाएं बंद रखें। सवाल उठते हैं कि क्या सरकार के पास ऐसी कोई सक्षम एजेंसी नहीं जो सफल परीक्षा कंडक्ट करवा सके। हाल ही में सरकार के इस कदम से इस बात को मानने में भी कोई गुरेज नहीं होनी चाहिए कि आने वाले दिनों में प्रदेश में जो भी परीक्षाएं होंगी उनमें सरकार ये व्यवस्था जारी रख सकती है। तब वो दिन भी दूर नहीं जब इंटरनेट शटडाउन के मामले में विवादित राज्य की पहचान रखने वाले जम्मू एवं कश्मीर को पछाड़ कर राजस्थान पहले नंबर पर आ जाए। क्योंकि साल 2015 से 14 जुलाई, 2018 तक राजस्थान में 26 बार इंटरनेट सेवाएं बंद हो चुकी है। ये आंकड़ा जम्मू एवं कश्मीर के बाद आता है।
तो क्या किसी सुशासन में ई-गवर्नेंस और इंटरनेट शटडाउन साथ-साथ चल सकते हैं? डिजिफेस्ट के समापन समारोह पर सीएम वसुंधरा राजे ने ये भी मंशा जाहिर की कि प्रदेश के लोगों के चेहरों पर सदैव मुस्करहाट रहे। लेकिन पिछले सात महीने में नौ बार इंटरनेट शटडाउन के रिकॉर्ड को देखते हुए उन चिंताओं की लकीरें दूर कैसे होंगी? जब किसी का ई-बिल पेमेंट न हो पाया हो, किसी के पेमेंट में देरी से उसे जुर्माना देना पड़ा हो, डिजिटल ट्रांजेक्शन नहीं कर पाया हो, डिजिटल वॉलेट के इस्तेमाल से वंचित रह गया हो ऐसे तमाम मौके रहे होंगे जब उसे अपने मोबाइल के इंटरनेट की अहमियत मालूम हुई होगी। और तब उसने सिर्फ सरकार को कोसा ही होगा। डिजिफेस्ट मंच की विशाल सी स्क्रीन पर सरकार की लंबी फेहरिस्त में कोटा-जोधपुर के लिए इन्क्यबेशन सेंटर आई स्टार नेस्ट, राजस्थान सिक्योरिटी ऑपरेशन सेंटर, डिजास्टर रिकवरी डाटा सेंटर, इंटीग्रेटेड हेल्थ मैनेजमेंट, राजस्थान टेलीप्रेजेंस प्रोजेक्ट, राज वाइ-फाइ और राजस्थान वाइल्डलाइफ सर्विलांस सिस्टम जैसी बेशुमार योजनाओं को डिजिटल लॉन्च किया गया। ये देख जनता को भी सरकार से बड़ी उम्मीदें होंगी कि किसी बड़े कारण की बजाय अपनी विफलता को छिपाने के लिए सरकार इंटरनेट शटडाउन न करें। वरना उसे विधानसभा प्रतिपक्ष नेता रामेश्वर डूडी के उस आरोप को स्वीकार करने में भूल नहीं होगी कि डिजिफेस्ट के नाम पर ये 100 करोड़ रुपए से भी ज्यादा का घोटाला है।
भारत के नक्शे पर राजस्थान इंटरनेट शटडाउन के मामले में अव्वल की दिशा में बढ़ता नजर आ रहा है तो विश्व के नक्शे भारत खुद सबसे आगे हैं। यूनेस्को और इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स की साउथ एशिया प्रेस फीडम रिपोर्ट 2017-18 में देश में 82 बार इंटरनेट सेवाएं बंद रही। रिपोर्ट में अशांत देश पाकिस्तान और अफगानिस्तान भी हमसे बेहतर स्थिति में हैं। हमें समझना चाहिए कि बार-बार इंटरनेट बंद की घटनाओं से हमने, हमारी सरकारों ने बीते वक्त में क्या सीखा?