2. क्या गांधी की हत्या करने वाले नत्थूराम गोडसे की याद में होने वाले कार्यक्रम की तरह राजपूत समाज का इरादा गैंगस्टर आनंदपाल की इमेज को ट्रांसफोर्म करना है?
3. राजपूत समाज राजनीतिक जमीन की तलाश की जुगत में हैं। क्या ये कार्यक्रम उसके लिए आगामी चुनाव में एकता की ताकत दिखाने का प्लेटफॉर्म बन पाएगा?
आनंदपाल। अपने नेटवर्क में एपी के नाम से मशहूर गैंगस्टर आनंदपाल से जुड़ी खबरों ने हमेशा सांसे थाम कर उसे देखने-पढ़ने के लिए मजबूर किया। चाहे वो टीवी पर हो या अखबार में। 24 जून, 2018 को आनंदपाल की पहली बरसी है। बीकानेर शहर के ज्यादातर चाक-चौराहों पर लगे आनंदपाल के बैनर ध्यान खींच रहे हैं। बैनर में अंडे की आकार में आनंदपाल की तस्वीर है। उसके बैकग्राउंड में लोगों की उमड़ी भीड़ है। बैनर पर कथित सर्वसमाज की अपील है- श्रद्धांजलि सभा/विशाल रक्तदान शिविर। रविवार, 24 जून 2018 सुबह सात बजे से।
राजपूत समाज में ऐसा पहली बार हो रहा कि जब वो किसी गैंगस्टर या कथित कुख्यात बदमाश आनंदपाल के नाम पर रक्त दान करेगा। इसीलिए ये बात भी आसानी से डायजेस्ट नहीं होती। महापुरुषों को छोड़ दे तो ये समाज लोकप्रिय नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं के नाम पर समय-समय पर ऐसे आयोजनों में रक्त दान करता रहा है। अगर समाज के ही किसी व्यक्ति की बात करे तो सबसे पहले नाम सांसद रह चुके महेंद्र सिंह भाटी का नाम आता है। युवाओं के बीच लोकप्रिय रहे महेंद्र सिंह भाटी भाजपा के दिग्गज नेताओं में शुमार देवीसिंह भाटी के बेटे थे।
आनंदपाल की बरसी पर रक्तदान के आयोजन पर क्षत्रिय सभा बीकानेर कार्यकारिणी सदस्य प्रदीप सिंह चौहान का कहना है कि आनंदपाल का एनकाउंटर फर्जी था। इसकी दोषी भाजपा सरकार है। 12 जुलाई, 2017 को सांवराद में हुए उपद्रव की भी यही वजह थी। तब समाज के युवाओं में सैलाब आया था और उस सैलाब में हर सोच के लोग उनके साथ जुड़ गए थे। अब उनकी पुण्यतिथि आ रही है तो युवाओं के दिल में है कि उनके लिए कुछ करे। ये आयोजन भी उसी का नतीजा है।
पूरे राजस्थान में होगी आनंदपाल की श्रद्धांजलि सभा व रक्त दान शिविर
कथित सर्वसमाज आनंदपाल की बरसी पर पूरे राजस्थान में उन्हें श्रद्धांजलि देगा। आयोजन से जुड़े अखिल भारतीय युवा क्षत्रिय महासभा के जिलाध्यक्ष चंद्रवीर सिंह चौहान ने बातचीत में बताया कि राज्य के अलग-अलग जगहों पर मोहल्ला, वार्ड और तहसील स्तर पर कमेटियां बनाई गई है। रक्त दान शिविर में 50 हजार यूनिट रक्त जुटाने का लक्ष्य रखा है। राजस्थान के अलावा महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर प्रदेश में भी राजपूत समाज के लोग इस आयोजन की तैयारी में हैं। लेकिन मुख्य कार्यक्रम लाडनूं में ही होगा। उन्होंने बताया कि निर्धारित लक्ष्य के मुताबिक रक्त दान होता है तो इससे इंकार नहीं किया जा सकेगा छह महीने बाद राज्य में होने वाले चुनाव में अपनी प्रबल दावेदारी पेश करेगा। समाज में भाजपा सरकार के प्रति सिर्फ आनंदपाल के फर्जी एनकाउंटर को लेकर ही नाराजगी नहीं है बल्कि पुलिस की मुठभेड़ में मारे गए जैसलमेर के चतुरसिंह को लेकर भी है। उस वक्त भी राजपूत समाज ने एक होकर सीबीआई जांच की मांग को लेकर पुलिस और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया था। इसी समाज ने उस वक्त भी दावा किया था कि चतुर सिंह की हत्या के बाद पुलिस ने मनगढ़ंत कहानी गढ़ी थी।
‘उपचुनाव में सरकार को दे दिया है नाराजगी का संकेत’
श्री अखिल रावणा राजपूत सेवा संस्थान के प्रदेश उपाध्यक्ष गजेंद्र सिंह सांखला ने कहा कि आनंदपाल मामले में सरकार की कार्यवाही को लेकर समाज में जबर्दस्त नाराजगी है। इसे अलवर और अजमेर में हुए उपचुनाव में देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि जितने दोषी आनंदपाल है उतनी ही दोषी भाजपा सरकार भी है। सरेंडर की बात किए जाने के बाद भी सरकार के इशारे पर उनका एनकाउंटर किया गया। इसलिए उपचुनाव के वक्त अजमेर में तीन दिन बीता कर समाज को एकजुट किया। उसी परिणाम रहा कि सरकार उपचुनाव हार गई।राजस्थान में एमएलए की करीब 30 और एमपी की चार सीटों पर राजपूतों का दबदबा
भाजपा सरकार के रवैये से राजपूत समाज में नाराजगी है। खासकर सीटिंग सीएम वसुंधरा राजे को लेकर। अब ठीक एक साल बाद कथित सर्वसमाज के बैनर तले राजपूत समाज एकजुट हुए तो बीते वक्त के दर्द पर चर्चा होनी स्वभाविक है। उनके बीच ये बात भी जरूर रहेगी उनकी अनदेखी हुई है। ऐसे में आठ से दस प्रतिशत के वोटर्स वाला राजपूत समाज अपने हितों को साधने के लिए आनंदपाल की बरसी के बहाने केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक अपने वजूद की ताकत को दिखाने से खुद को परहेज नहीं करेगा।
कितना सही है आनंदपाल का महिमामंडन?
जो कथित सर्वसमाज है वो दरअसल रावणा राजपूत समाज के आस-पास सिमट जाता है। आनंदपाल की बरसी को लेकर समाज के विभिन्न संगठनों से बात की गई तो उन्होंने ये कहते हुए पला झाड़ लिया कि आयोजन के लिए उनकी तरफ से सिर्फ जगह दी गई है। लेकिन कार्यक्रम में उपस्थित होना पूरी तरह से तय नहीं है। पर ये समाज अच्छी तरह से यह भी जानता है कि गुजरे वर्षो में उसका राजनीतिक कद घटा है। उसे बीते साल सांवराद और पद्मावत (पहले पद्मवाती) फिल्म प्रदर्शन के दौरान अपने अभियानों और रोष से भुनाने की कोशिश की है। माना जा सकता है कि आनंदपाल की मौत को फर्जी एनकाउंटर के नाम पर समाज को एकजुट कर राजनीति में पुरानी जमीन को हासिल करने की रणनीति है। वरना कोई भी समाज ऐसी शख्सियत को बमुश्किल ही जस्टिफाई कर पाएगा जिसने डेढ़ साल तक फरारी काटी हो। आमजन से लेकर पुलिस तक में उसका खौंफ हो। आनंदपाल पर साल 1992 से लेकर 2017 तक 37 मुकदमे दर्ज है। जिसमें हत्या से लेकर हत्या के प्रयास, लूटने, अपहरण व फिरौती के केस शामिल है।
निष्कर्ष : राजपूत समाज के सर्वेसर्वा को अपनी सियासत से परे भी सोचना चाहिए। उसकी ये जिम्मेदारी बनती है कि वो अपने समाज में नैतिकता, आदर्श, ईमानदारी और ज़िम्मेदारी को ताक पर न रखे। वरना इन मूल्यों की गैर मौजूदगी उसके वजूद को धुंधला कर सकती है।
