वैन, ड्राइवर अौर मुस्कान...
क्लियर कर देता हूं कि यहा मुस्कान किसी लड़की का नाम नहीं है। ये मुस्कान उस मारूति वैन में बैठे ड्राइवर ओमप्रकाश की थी जो हर्षनाथ की पहाड़ी वाले रास्ते को जाती जर्जर और मोटे रोड़े वाली कच्ची सड़क के बीच फंसी वैन में बैठे सवारियों को दे हौंसला दे रही थी। मौका था भास्कर प्रेमियर लीग का जिसके पूल-डी में श्रीगंगानगर, बीकानेर, अजमेर और सीकर की टीमें थी। क्वालीफाई के लिए पूल-डी के सभी मैच सीकर के हाइवें पर बने गुरूकुल एकेडमी में होने थे। पहला मैच खेलने के लिए गुरूकुल एकेडमी पहुंचे तो ग्राउंड को छोड़ उसके पीछे का नजारा आंखों में समा गया जो हर्षनाथ की पहाड़ियों से घिरा था। इतनी गर्मी के बीच पहाड़ का दिखना मन हुआ खेल छोड़ उन पहाड़ियों पर जाने का। पहले दो मैच बिजी शिड्यूल के चलते नहीं जा सकें। लेकिन तीसरे मैच के लिए चार दिन बाद जब फिर बीकानेर से सीकर पहुंचे तो मैच से ठीक एक दिन पहले खिलाड़ियों के बीच हर्षनाथ की पहाड़ियों पर जाने का प्लान जल्दी से बन गया। शाम पौने छह बजे ठीक होटल के बाहर मारूति वैन आ कर लग गई और हम छह बजे तक सवार होकर उस प्राकृति की आबादी की तरफ चल पड़े। समतल सड़क से 12 किलोमीटर दूर पहाडी शिखर पर बसे हर्षनाथ मंदिर में जाना था। चलती वैन में बैठे हम सभी रोमांचित थे हरी-हरी आबादी और ऊंचाई से छोटे-छोटे घरों देख कर मानों अब हम से ऊपर कोई नहीं। मंदिर से ठीक तीन किलोमीटर नीचे छोटे-बड़े गढ्डे और लाल बजरी के बीच वैन ने कांट्रोल खो दिया और पिछे की तरफ फिसलने लगी। विंडो से दिख रही पीछे की खाई अब धीरे-धरी करीब आ रही थी। हम सभी सकपका गए तभी ड्राइवर से धीमी आवाज में उतरने के लिए कहा तो एक मुस्कान पास कर दी। इससे पहले कुछ समझ पाते सीट के साथ ठठक के बैठ गए, जी आया कि वैन का गेट खोल वैन को आगे की तरफ धक्का लगाने का। लेकिन ड्राइवर के शांत स्वभाव ने फिर से उस हड़बड़ी को रोक दिया जो हमारे बीच बनकर बाहर आने को तैयार थी। खाई से सिर्फ 15 कदम दूर वैन कंट्रोल पर आते ही जान में जान आ गई। फाइनली हम कुछ देर बाद मुख्य मंदिर पहुंच गए। मंदिर घूम कर जब होटल पहुंचे तो इसका किस्सा अपने क्रिकेट एक्सपर्ट को बताया जो एक स्कूल में कोच भी है उन्होंने कहा कि आप लोग पागल है जो वैन में गए। मैंने मन ही मन सोचा वैन ताे अच्छी खासी हाइवे पर 90 की स्पीड में सड़क पर दनदनाती दौड़ रही थी। फिर उन्होंने उसकी पुरानी टैक्नोलॉजी की ओर इशारा कर दिया। पर अब भी में वहां की व्यवस्था को लेकर सोच में पड़ा था। उत्तर भारत के पहाड़ों में बनी सड़के काफी बेहतर है पर यहां क्यों नहीं ? शायद पर्यटन स्थल की दृष्टि से देखे तो यहीं वजह हो सकती है कि यहां भी वैसी सड़कें क्यों नहीं? सीकर को आज के नजरिये से देखे तो एज्युकेशन हब के रूप में उभर रहा है यहा पैसा भी खूब है ये स्मार्ट सिटी की तरफ भी बढ़ा रहा है। अक्सर जब विकास की बात होती है तो चुनाव के वायदे याद आ जाते है और नेता लोग भी जीतने के बाद उन्हीं पर काम करते है जिसे राजनीति मुद्दा बनाया गया है। उम्मीद है कि अगले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में यहां के एमपी और एमएलए इसे राजनीति मुद्दा बनाकर अपने जीत की एक सीढ़ी जरूर बनाए ताकि उनका भला हो उनके क्षेत्र का भी ताकि आते-जाते पर्यटक सुरक्षित जगह के रूप में इसे देखना न भूले।