‘द हेट यू गिव’ सुनकर तो यही लगता है जैसे कि किसी लव स्टोरी में ब्रेकअप के बाद दिलजले आशिक या प्यार में धोखा पाने वाली लड़की की बदले की भावना आवाज बनकर आने वाली लाइन रही हो. डायरेक्टर जॉर्ज टिलमैन इसे थोड़ा अलग सदंर्भ में देखते और दिखाते भी है. हां, वो लाइन जरूर मन से निकली है. एंजी थॉमस की ‘द हेट यू गिव’ नॉवेल पर आधारित हूबहू नाम की फिल्म आई है. ये फिल्म एक अश्वेत परिवार के मुखिया मिस्टर कार्टर डायनिंग टेबल पर अपने बच्चों को सख्त हिदायतें देने के साथ शुरू होती है. ठीक वैसे ही जैसा कि एक सामान्य परिवार में पैरेंट्स अपने बच्चों को स्पेशल गेस्ट के सामने न आने की बातें बोलते हैं. इसलिए की बच्चों के कैरेक्टर्स और उनकी परवरिश की बातें उस गेस्ट के साथ न चली जाए. लेकिन कार्टर यहां बच्चों को ऐसे हालातों से निपटने के तरीके बता रहे होते हैं जो उनके सामने कभी भी पैदा हो सकते हैं. कार्टर स्टार (9), सेवन (10) और सकानी (1) को बताता है कि जब तुम्हें पुलिस रोके तो रूक जाना, हाथ ऊपर कर लेना, अपनी कार को रोक देना, हाथ डेशबोर्ड पर रख देना और कुछ मत करना, हमारा हिलना भी शक के दायरे में ला सकता है. दरअसल कार्टर परिवार अमेरिका के जिस गार्डन हाइट्स शहर में रहता है वहां की अफ्रीकन-अमेरिकन आबादी बहुसंख्यक है. लगातार ड्रग्स तस्करी और हिंसक घटनाओं के चलते पुलिस की नजर में अश्वेत समुदाय के लोग और उनका इलाका संदिग्ध की इमेज लिए रहता है.
डायरेक्टर जॉर्ज ने कहानी को नायिका स्टार के जरिए पेश किया है. 16 साल की स्टार अपने आसपास के माहौल से अच्छी तरह वाकीफ है. बच्चों की सुरक्षा और बेहतर भविष्य के लिए उनकी मां मिसिज कार्टर इलाके से बाहर के विलियमसन स्कूल में एडमिशन करवा देती है, जहां श्वेत परिवारों के बच्चों की संख्या ज्यादा है. सीन के बैकग्राउंड में स्टार की आवाज में चलता वॉयसओवर उसके मां-बाप की पहली मुलाकात, शादी, पिता की शॉप और स्कूल में उसका एक श्वेत लड़के की स्मार्टनैस पर फिदा होना. सब ब्रीफ करता है. अश्वेत होने के चलते स्टार विलियमसन और गार्डन हाइट्स के बीच जीवन के फर्क को अच्छी तरह समझती है. वो एक दोहरी जिंदगी जीने को मजबूर रहती है. इन सबके बावजूद कहीं खुश लगती है तो वह जूतों को देखकर. उसे स्पोर्ट्स जूते खूब पसंद है. उसी तरह जैसे अन्य लड़कियों को गैजेट्स, ड्रेस, जूलरी व डायरी लिखना पसंद होता है. उसकी नजर में जूतों का ख्याल न रखना पाप लगने सा है. कहानी में सीरियस मोड़ तब आता है जब स्टार के बचपन का दोस्त खलील उसी के सामने श्वेत पुलिस ऑफीसर की गोली से मारा जाता है. सिर्फ इसलिए की वो अश्वेत है, रात के वक्त कार की साथ वाली सीट पर उसके साथ लड़की होती है या फिर स्टार की तरह उसे किसी से वो हिदायतें नहीं मिली होती है. खलील की मौत के बाद नाराज अश्वेत समुदाय इंसाफ के लिए सड़क पर उतर आता है.
नस्लभेद विषय पर बनी ‘द हेट यू गिव’ कोई पहली फिल्म नहीं है। इससे पहले भी ‘डू दा राइट थिंग’ फिल्म आ चुकी है. जिसमें पुलिस का अश्वेतों के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल है. श्वेत के एक रेस्टोरेंट में अश्वेतों के साथ व्यवहार है. आगे अश्वेतों का रोष, नारेबाजी और आगजनी है. जबकि टेट टेयलर की निर्देशित फिल्म ‘द हेल्प’ में श्वेतों के घरों में काम करने वाली अश्वेत महिलाओं के प्रति व्यवहर एक अलग नजरिया पेश करता है. उन अश्वेत महिलाओं को गुलाम समझ लिया जाता है. ड्यूटी टाइम में उन्हें मालिकों का टॉयलेट तक इस्तेमाल करने की मनाही होती है. दोनों कहानियों से जॉर्ज की ये कहानी एक कदम आगे हैं, जहां संदिग्ध देखते हुए अश्वेत को पुलिस गोली मार देती है या गिरफ्तार कर लेती है या फिर पूछताछ में उन्हें सवालों से हतोत्साह कर देती है. शायद इसीलिए भी स्टार को गार्डन हाइट्स की जगह विलियमसन की जिंदगी अच्छी लगती है. लेकिन स्कूल में अपनी आइडेंटिटी को दोस्तों से छिपाए रखना उसकी बैचेनी की वजह हमेशा बनी रहती है. औरों की तरह वो आत्मविश्वास से लबरेज नहीं दिखती. उसे मालूम चल जाता है कि ये जीवन उसके लिए THUG है, जिसका अर्थ ‘जो समाज हमें बचपन में देता है वही उन पर भरी पड़ता है जब हम बड़े होकर बिगड़ जाते हैं.’ इस बात को साबित करने के फिल्म के आखिर में वो सीन उभरता है, जहां 8 साल का सकानी अपने परिवार को बचाने के लिए अपने ही समुदाय के ड्रग सप्लायर माफिया किंग पर रिवॉल्वर तान देता है.
फिल्म की खासियत है कि श्वेत-अश्वेत दोनों पक्षों को संतुलित रखा है.अगर स्कूल में स्टार की दोस्त हेली को अश्वेतों से नफरत है तो उसका बेहतर जवाब स्टार का बॉयफ्रेंड क्रिस है. जो कहता कि ‘मुझे इंसानियत के रंग से प्यार है.’ उधर स्टार खुद अपने ही समुदाय के भीतर गैर कानूनी काम करने वाले किंग के खिलाफ गवाह बन जाती है. गलत को गलत और सही को सही के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का अमेरिका-मैक्सिको के बॉर्डर पर दीवार बनाने का विचार कितना सही है पता नहीं. वो कहते हैं कि अवैध प्रवासियों को बर्दाश्त करना दया नहीं क्रूरता है. तो हमें डेमोक्रेटिक खेमे में राष्ट्रपति उम्मीदवार की दौड़ में शामिल कमला हैरिस और तुलसी गबार्ड को लेकर ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं. राष्ट्रपति चुनाव में पौने साल का वक्त है. चुनावी राजनीति में कब कौन सा मुद्दा बन जाए, कोई नहीं जानता. ये सही है कि वहां के लिबरल समाज ने अश्वेत समुदाय से आने वाले बराक ओबामा को अमेरिका का सर्वोचच्च पद मिला, लेकिन ब्लैक गांधी के नाम से पहचाने जाने वाले मार्टिन लूथर किंग जूनियर के आंदोलन से मिले अश्वेतों के अधिकार के बावजूद वहां का समाज उन्हें कम ही सहज लेता है.
किसी ने बहुत सही कहा है, हम निहत्थे हो ही नहीं सकते, क्योंकि हमारा रंग ही वो हथियार है जिससे वो डरते हैं. हमारा रंग हमारा अभिमान है, हमारा गुनाह या फिर कोई कमजोरी नहीं. -अश्वेतों की लड़ाई लड़ने वाली वकील का वकतव्य.
डायरेक्टर जॉर्ज ने कहानी को नायिका स्टार के जरिए पेश किया है. 16 साल की स्टार अपने आसपास के माहौल से अच्छी तरह वाकीफ है. बच्चों की सुरक्षा और बेहतर भविष्य के लिए उनकी मां मिसिज कार्टर इलाके से बाहर के विलियमसन स्कूल में एडमिशन करवा देती है, जहां श्वेत परिवारों के बच्चों की संख्या ज्यादा है. सीन के बैकग्राउंड में स्टार की आवाज में चलता वॉयसओवर उसके मां-बाप की पहली मुलाकात, शादी, पिता की शॉप और स्कूल में उसका एक श्वेत लड़के की स्मार्टनैस पर फिदा होना. सब ब्रीफ करता है. अश्वेत होने के चलते स्टार विलियमसन और गार्डन हाइट्स के बीच जीवन के फर्क को अच्छी तरह समझती है. वो एक दोहरी जिंदगी जीने को मजबूर रहती है. इन सबके बावजूद कहीं खुश लगती है तो वह जूतों को देखकर. उसे स्पोर्ट्स जूते खूब पसंद है. उसी तरह जैसे अन्य लड़कियों को गैजेट्स, ड्रेस, जूलरी व डायरी लिखना पसंद होता है. उसकी नजर में जूतों का ख्याल न रखना पाप लगने सा है. कहानी में सीरियस मोड़ तब आता है जब स्टार के बचपन का दोस्त खलील उसी के सामने श्वेत पुलिस ऑफीसर की गोली से मारा जाता है. सिर्फ इसलिए की वो अश्वेत है, रात के वक्त कार की साथ वाली सीट पर उसके साथ लड़की होती है या फिर स्टार की तरह उसे किसी से वो हिदायतें नहीं मिली होती है. खलील की मौत के बाद नाराज अश्वेत समुदाय इंसाफ के लिए सड़क पर उतर आता है.
नस्लभेद विषय पर बनी ‘द हेट यू गिव’ कोई पहली फिल्म नहीं है। इससे पहले भी ‘डू दा राइट थिंग’ फिल्म आ चुकी है. जिसमें पुलिस का अश्वेतों के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल है. श्वेत के एक रेस्टोरेंट में अश्वेतों के साथ व्यवहार है. आगे अश्वेतों का रोष, नारेबाजी और आगजनी है. जबकि टेट टेयलर की निर्देशित फिल्म ‘द हेल्प’ में श्वेतों के घरों में काम करने वाली अश्वेत महिलाओं के प्रति व्यवहर एक अलग नजरिया पेश करता है. उन अश्वेत महिलाओं को गुलाम समझ लिया जाता है. ड्यूटी टाइम में उन्हें मालिकों का टॉयलेट तक इस्तेमाल करने की मनाही होती है. दोनों कहानियों से जॉर्ज की ये कहानी एक कदम आगे हैं, जहां संदिग्ध देखते हुए अश्वेत को पुलिस गोली मार देती है या गिरफ्तार कर लेती है या फिर पूछताछ में उन्हें सवालों से हतोत्साह कर देती है. शायद इसीलिए भी स्टार को गार्डन हाइट्स की जगह विलियमसन की जिंदगी अच्छी लगती है. लेकिन स्कूल में अपनी आइडेंटिटी को दोस्तों से छिपाए रखना उसकी बैचेनी की वजह हमेशा बनी रहती है. औरों की तरह वो आत्मविश्वास से लबरेज नहीं दिखती. उसे मालूम चल जाता है कि ये जीवन उसके लिए THUG है, जिसका अर्थ ‘जो समाज हमें बचपन में देता है वही उन पर भरी पड़ता है जब हम बड़े होकर बिगड़ जाते हैं.’ इस बात को साबित करने के फिल्म के आखिर में वो सीन उभरता है, जहां 8 साल का सकानी अपने परिवार को बचाने के लिए अपने ही समुदाय के ड्रग सप्लायर माफिया किंग पर रिवॉल्वर तान देता है.
फिल्म की खासियत है कि श्वेत-अश्वेत दोनों पक्षों को संतुलित रखा है.अगर स्कूल में स्टार की दोस्त हेली को अश्वेतों से नफरत है तो उसका बेहतर जवाब स्टार का बॉयफ्रेंड क्रिस है. जो कहता कि ‘मुझे इंसानियत के रंग से प्यार है.’ उधर स्टार खुद अपने ही समुदाय के भीतर गैर कानूनी काम करने वाले किंग के खिलाफ गवाह बन जाती है. गलत को गलत और सही को सही के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का अमेरिका-मैक्सिको के बॉर्डर पर दीवार बनाने का विचार कितना सही है पता नहीं. वो कहते हैं कि अवैध प्रवासियों को बर्दाश्त करना दया नहीं क्रूरता है. तो हमें डेमोक्रेटिक खेमे में राष्ट्रपति उम्मीदवार की दौड़ में शामिल कमला हैरिस और तुलसी गबार्ड को लेकर ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं. राष्ट्रपति चुनाव में पौने साल का वक्त है. चुनावी राजनीति में कब कौन सा मुद्दा बन जाए, कोई नहीं जानता. ये सही है कि वहां के लिबरल समाज ने अश्वेत समुदाय से आने वाले बराक ओबामा को अमेरिका का सर्वोचच्च पद मिला, लेकिन ब्लैक गांधी के नाम से पहचाने जाने वाले मार्टिन लूथर किंग जूनियर के आंदोलन से मिले अश्वेतों के अधिकार के बावजूद वहां का समाज उन्हें कम ही सहज लेता है.